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संवेगरंगसाला
नरकस्वर्गयोः प्रश्ने अर्णिक पुत्राचार्यस्य प्ररूपणा।
॥४१३॥
पुष्फबई तेणं चिय, निव्वेएणं पवज्जिङ दिख । देवत्तं संपत्ता, अह सा करुणाए सुमिणम्मि ॥५३२७॥ नरए नेरइए वि य, दरिसइ तह तिक्खदुक्खसंतत्ते । पडिबोहणऽट्टया सुह-सुत्ताए पुष्फचूलाए ॥५३२८॥ अह ते भीसणरूवे, द8 सा झत्ति जायपडिबोहा । साहेइ नरयवित्त, नरवइणो सो विवाहरि ॥५३२९।। पासंडिणो असेसे, पुच्छइ देवीए पच्चयनिमित्तं । भो! केरिसया नरया, तह तेसु दुहं ? ति साहेह ॥५३३०॥ नियनियमयाऽणुरूवेण, तेहि सिट्ठो य नरयवित्तंतो। नवर' नो पडिवन्नो, देवीए तयऽणु भूवइणा ॥५३३१॥ अन्नियपुत्ताऽऽयरियो, बहुस्सुओ विस्तुओ य थेरो य । वाहरिऊणं पुट्ठो, जहडिओ तेण सिट्ठो य ॥५३३२॥ तो भत्तिनिब्भराए, भणियं देवीए पुफचूलाए । कि' भयवं! तुमए वि हु, दिट्ठो सुमिणम्मि एसो त्ति ॥५३३३।। गुरुणा भणियं भद्दे !, जिणि दसमयप्पईवसामत्था । तं णत्थि जं न नाइ, केत्तियमेत्तं नरयवित्तं ॥५३३४॥ अवरसमए य तिस्सा, तीए जणणीए दंसियो सग्गो। सुविणम्मि विम्हयाऽऽवह-विभूइरेहंतसुरनियरो ॥५३३५।। पुव्वं पिव पुणरवि पत्थिवेण, ता जाव पुच्छिो सूरी । तेणाऽवि तस्परूवं, निवेइयं हरिसिया देवी ॥५३३६।। चलणेसु णिवडिऊणं, भत्तीए जपि समाढत्ता। कह होज नरयदुकुख, कह वा सुरसोकखसंपत्ती ॥५३३७।। गुरुणा भणियं भद्दे !, विसयपसत्तिप्पमोकखपावेहिं । पाविजइ नरयदुहं, तच्चागेणं च सग्गसुई ॥५३३८॥ ताहे सा पडिबुद्धा वि, सम्म मोत्तण विसयवासंग। पव्वजागहणऽत्थं, आपुच्छइ पत्थिवं तत्तो ॥५३३९।। अन्नत्थ विहरियव्वं, तुमए ण कया वि इइ पइन्नाए। कहकहवि अणुन्नाया, नरवइणा विरहविहुरेण ॥५३४०॥
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