SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 405
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संवेगरंगसाला अपनीडकस्य स्वरूपम् । ॥३६३।। मोत्तूण रागदोसे, ववहारं पट्ठवेइ सो तस्स । ववहारकरणकुसलो, जिणवयगविसारओ धीरो ॥४६६०॥ ववहारमध्याणतो, ववहरणिज्जं च ववहरंतो य। ओसीयइ भवपंके, असुह कम्मं च आयरइ ॥४६६१।। जह रोगिणं न सज्जी-करेइ विज्जो तिगिच्छयाऽकुसलो। तह अव्यवहारविऊ, न सोहिकामं विसोहेइ ॥४६६२॥ तम्हा संवसियव्वं, ववहारविउस्स पायमूलम्मि । तत्थ हु विजा चरणं, समाहिबोहीओ नियमेण ॥४६६३।। ओयंसी तेयंसी, वच्चंसी पहियकित्ती आयरिओ। सीहोवमो य भणिओ, जिणेहि १ओवीलओ नाम ॥४६६४॥ निद्वमहुरेहि हिययंगमेहि, पल्हायणिज्जवयणेहि। परहियकरणपरायण-मणेण तेणाऽवि मुणिवइणा ॥४६६५।। इह पण्णविनमाणो, सम्म पि हु तिव्वगारवाऽऽईहिं। कोई णियए दोसे, सम्म नाऽऽलोयए खवगो ॥४६६६।। तो ओवीलेयव्यो, गुरुणा ओवीलएण सो अहवा । जह उयरत्थं मंसं, वमयइ सीही सियालीए ॥४६६७।। तह फरुसगिराहि अणुञ्जयस्स, खवगस्स नीहरइ दासे । आयरिओ तं कडुओ-सहं व पत्थं भवइ तस्स ॥४६६८।। सुलहा लोए आयट्ठ-चितगा परहियम्मि मुक्कधुरा । आयट्ठच पर8 च, चितयंता जए दुलहा ॥४६६९।। खवगस्स जइ न दासे, उग्गालेइ सुहुमे व इयरे वा। ता न नियत्तइ तत्तो, खवगो न गुणे य परिणमइ ॥४६७०।। तम्हा गणिणा ओवीलएग, खबगस्स दाससव्वस्सं । उग्गालेयव्वं खलु, तस्स हियं चितयंतेण ॥४६७१।। सेज्जासंथारोवहि-संभोगाऽऽहारनिकखमपवेसे। ठाणनिसीयतुयट्टण-विगिचगुब्बत्तणाऽऽईसु ॥४६७२।। १ ओबीलओ = अपनीडकः = AM२ रात्री प्रायश्चित्त । भो शियन तयार ४२ना२ । वा ॥३६३|
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy