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________________ संवेगरंगसाला संसर्गजन्यगुणदोषाणां वर्णनम् । ॥३५२॥ हुँ'तगुणनासणभया, अहुतगुणदूरतरगमभएणं । दोसऽल्लियणभएण य, दुजणसंग विवज्जेह ॥४५२५॥ भाविजइ जइ दव्वेण, नवघडो सुरहिणेयरेणं वा। ता गुणदोसेहिं नरो, भाविजइ किन परसंगा ॥४५२६॥ दुजणसंसग्गीए, पायं सुयणो वि नियगुणं चयइ । संसग्गीए अग्गिस्स, जह जलं सीयलत्तगुणं ॥४५२७।। दुजणसंसग्गीए, संकिंजह सजणो वि दोसेहि। चडालगिहे दुद्ध', पिवंतओ बंभणो व्व जणे ॥४५२८॥ वेरग्गवं पि दुञ्जण-जणसंसग्गीए भाविओ पायं । न रमइ सजणमझे, रमइ य दुजणजणस्संऽतो ॥४५२९॥ कुसुममऽगंधं पि जहा, देवयसेस त्ति कीरए सीसे । तह सुयणमज्झवासी, पूइजइ दुजणो वि जणो ॥४५३०॥ अन्न पि तहा वत्थु, जं जं चरणगुणनासणं कुणइ । तं तं परिहरह तओ, होहिह दढसंजमा तुम्मे ॥४५३१॥ निच्च पासत्थाऽऽईहि, संथवं पि य पयत्तओ चयह । पुरिसो संसग्गिवसेण, तम्मओ होइ अचिरेण ॥४५३२॥ तहाहिसंविग्गस्स वि तस्संगईए, पीई ततो वि वीसंभो। सई वीसंमे य रई, होइ रईए य तम्मयया ॥४५३३॥ तत्तो लज्जाविगमो, पवत्तणं निव्विसंकमऽसुहऽत्थे । पियधम्मो वि हु एवं, परिभस्सइ संजमाओ लहु ॥४५३४॥ संविग्गाण उ मज्झे, अप्पियधम्मो वि कायरो वि नरो। उज्जमइ चरणकरणे, भावण-भय-माण-लज्जाहिं ॥४५३५॥ संविग्गो पुण तस्संगमेण, सविसेसगुणजुओ नियमा। जायइ जह कप्पूरो, सुरभितरो मिगमए मिलितो ॥४५३६॥ १ तम्मओ = तन्मयः -- तद्रूपः । ॥३५२।।
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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