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संवेग-17
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साधून प्रति अनुशास्त्यां महिलासगे दोपाः।
॥३४२॥
सन्नाउ कसाए वि हु, अट्ट रोदं च परिहरह निच्च । दुट्ठाणि इंदियाणि य, सम्म सव्वऽप्पणा जिणह ॥४३९८॥ E -जह सन्नरो पग्महिय-चावद डों भडो पलायतो। निदिज्जइ तह इंदिय-कसायवसमऽणुगओ साहू ॥४३९९।। "धन्ना य साहुणो ते, जे विसयवसाऽणुगम्मि लोगम्मि। विहरति विगयसंगा, अकलंका नाणचरणेसु ॥४४००॥ जे य विमुक्कविरोहा अव्वामोहा अभिन्नमुहसोहा । अगलियगुणसंदोहा, जयन्ति ते पसरियजसोहा ॥४४०१।। सीसाऽणुसासणे वि हु, पारद्धे अह इम' तुम पि खणं । वन्निज्जंतं जइपहु !, पहिट्ठचित्तो निसामेहि ॥४४०२॥ वज्जेह अप्पमत्ता ! अजा-संसग्गिमऽग्गिविससरिसं। अजाणुचरो साह, पावइ वयणिज्जमऽचिरेण ॥४४०३।। थेरस्स तवस्सिस्स वि, सुबहुसुयस्स वि पमाणभूयस्स । अञ्जासंसग्गीए, निवडइ वयणिजदढवज्जं ॥४४०४।। कि पुण तरुगो अबहुस्सुओ य, अविगिट्ठतवपसत्तो य। सदाऽऽगुणपसत्तो, न लहइ जणजपणं लोए ॥४४०५॥ सव्वत्तो वि विमुक्को, साहू सव्वत्थ होइ अप्पवसो। सो चेव होइ अञ्जाओ, अणुचरतो अणऽष्पवसो ॥४४०६॥ साहुस्स नत्थि लोए, अजासरिसी-हु बधणे उवमा । लद्धपसराओ जं ताओ, भावसंमग्गखलणीओ ॥४४०७।। जइ वि सय थिरचित्तो, तहा वि संसग्गिलद्धपसराए । अग्गिसमीवे घयमिव, मणं विलीएज अजाए ॥४४०८।। एमेव सेसमहिला-वग्गेण वि दरओ पयत्तण । वज्जेज्जह संसग्गि, इंदियदमदारुदहणऽग्गि ॥४४०९।। 'महिला कुलं सर्वस, पई सुयं मायरं च पियरं च । विसयंऽधा अगणंती, दुक्खसमुद्दम्मि पाडेइ ॥४४१०॥ | माणुन्नयस्स पुरिसदमस्म, नीयो बि आरुहइ सीसं । महिलानिस्सेणीए, गुणगणफलकलियसाहस्स ॥४४११॥
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