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________________ संवेगरंगसाला अनशनादानां स्वरूपम् । ॥३१२॥ अह एक्कारसवच्छर-छम्मासे आइमे तवं काउ'। नाइविगिट्ठ परिमिय-माऽऽयामेण च भुजेई अन्तिमछम्मासे पुण, अट्ठमदसमाऽऽइतवविहि काउ। आयामेण जहिच्छ', भुजइ तणुधारणहाए ॥४०११|| एवं एक्कारसवच्छराणि, गमिऊण बारसमवरिसं । कोडीसहियाऽऽयंबिल-तवकरणेण समाणेइ ॥४०१२।। नवरं बारसमस्सा, वरिसम्स उ अन्तिमम्मि चउमासे । एगऽतरियं सुचिर, धारेजा तेल्लगडूसं ॥४०१३।। तं छारमल्लगे प-किखवित्तु. धोवेज आणण तत्तो। कि' पुण एत्थ निमित्त भन्नइ वारण मा वयणं ॥४०१४॥ संमिल्लेजा तस्म उ, एवं च कयम्मि मरणसमए वि । उच्चरइ नमोकार', सयं अजत्तेण स महप्पा ॥४०१५।। एसुक्कोसा सले-हणा मए दव्वओ समकवाया। छ-चउम्पासाऽऽइया, एस चिय भन्नइ जहन्ना ॥४०१६।। सविसयपसत्तईदिय-कसायजोगाण निग्गहणरूवा । एसा उ भावसले-हणेह नाणीहि उबट्टा ॥४०१७॥ इय ताव विसेसविहि,पडुच्च संलेहगा विणिहिट्ठा । चिनियसामन्नेण', एवं चिय अणसणाऽऽईहि ॥४०१८॥ अणसण१ मृणोयरिया२, वित्तासंखेवणं ३ रसञ्चाओ। कायकिलेसो५ सेजा, विवित्तसंलीणयाऽऽई६ य ॥४०१९।। देसे सव्वेऽणसणं, सव्वाऽणसणं भणति भवचरिमं । देसे चउत्थमाऽऽई, जहसत्तीए कुणइ एसो ॥४०२०।। ऊपोयरिया दुविहा, दव्वे भावे य तत्थ दवम्मि । उवगरणभत्तपाणे, सा उवगरणे जिणाऽऽईणं ॥४०२१।। जिणकप्पऽभासीण व, न उ अन्नेसि पि संजमाऽभावा । अइरित्तपरिचाया, सव्वेसि वा जओ भणियं ॥४०२२।। जं वट्टइ उवयारे, उवगरण तं खु होइ नायव्वं । अइरेग अहिगरण, अजओ अजयं परिहरंतो ॥४०२३॥ ॥३१२॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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