SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 353
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जघन्य संवेगरंगसाला उत्कृष्ट-संलेखनास्वरूपम् । ॥३१॥ सिरिरिसहसामिपमुहा, जेहि वि किर सिज्झियव्ययमऽवस्सं । ते वि विसेसतवपरा, अंते जाया किर नहाहि ॥३९९७।। निव्वाणमेत्तकिरिया, सा चोइसमेण पढमनाहस्स । सेसाणं मासिएणं, वीरजिणि दस्स छट्रेणं ॥३९९८॥ तप्पक्खवाइणो ता, ताण कमेणेव भविउकामस्स । भवभीयस्सऽन्नस्स वि, जुत्ता संलेहेणा काउ ॥३९९९।। कितु विणा तवकम्म, पायं नो झत्ति उज्झइ देहो। चियमंससोणियत्तं, ता कायव्वं इमं पढम ॥४०००॥ चियममसोणियस्स हि, असुहपवित्तीए कारणमऽवंझ। संजायइ मोहृदओ, सहकारिविसेसजोगेण ॥४००१।। सइ तम्मि विवेगी वि हु. साहेइ न नियमओ अहिगयट्ट। कि प्रण विवेयवियलो, अदीहदरिसी अतवसेवी ॥४००२॥ ता जह न देहपीडा, न या वि चियम'ससोणियत्तं तु । जह धम्मझाणवुड्ढी, तहेव संलेहणं कुला ॥४००३॥ एसा य दुविहभेया, उक्कोसा तह भवे जहन्ना य। उक्कोसा वरिसबारस-छम्मासे जाव य जहन्ना ॥४००४॥ अहवा वि दव्वओ भावओ य, संलेहणा दुहा तत्थ। दव्वे सरीरगस्सा, भावे इंदियकसायाण ॥४००५।। तत्थ य जा उक्कोसा, बारस वरिसाई कालो भणिया। सा दब्बओ पवुच्चई, सुत्तऽणुसारेण इय किंपि ॥४००६॥ विविहाऽभिग्गहसंगय-चउत्थछट्टष्टुमाऽऽइविविहतवं । काऊण सव्वकाम-गुणिएण चेव पारेंतो ॥४००७॥ पदमं वासचउक्क, गैमेइ खमगो पुणो वि चत्तारि । सुविचित्ततवोजुत्ताई', नवरि भुंजइ न सो विगई ॥४००८॥ एगंतरिओवासा-ऽऽयंबिलपारणगविहिसणाहाई। तबइ वरिसाईदोन्नि, इय वरिसाई दस गयाई ॥४००९॥ १ निधाणमन्तकिरिया = निर्वाणम् = अन्तक्रिया = मोक्षः B | ॥३११
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy