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________________ संवेगरंगसाला दशार्णभद्रनृपबोधाय इन्द्रस्य ऋद्विविकुर्वणम् गजाग्रपदगिरौ महागिरेः अनशनेन देवत्वप्राप्तिः ॥३०९॥ अह तम्मणोगयकुवियप्प-मवगच्छिऊण सुरनाहो। अइरावणवयणे निम्म-वेइ अट्ठव वरदसणे ॥३९७०॥ एकेक्कम्मि य दसणे, विउव्वइ अट्ठ अट्ठ वावीओ। एकेकाए वावीए, तयऽणु अट्ठद्ध पउमाई ॥३९७१।। पउमे पउमे पवराई, अट्ठ पत्ताई तत्थ एकेके । पत्ते बत्तीसनिबद्ध-नाडयं निम्मवित्ताणं ॥३९७२।। तस्थाऽऽरूढो संतो, अणेगसुरकोडिपरिवुडो सामि'। तिपयाहिणि वंदइ, अच्छरियकरीए रिद्धीए ॥३९७३।। इय रिद्धिजुयं सकं, दट्ट गरिद्धिगारवो राया। पुल्विं अणेण धम्मो, कओ मए नो अहन्नेण ॥३९७४।। ता संपयं पि तं उबचिणेमि, इइ चितिऊण तव्वेलं । पव्वज पडिवाइ, चेचा रज महप्पा सो ॥३९७५।। अह सक्कहत्थिणो तत्थ, पव्वए देवयाऽणुभावेण । अग्गपयाई खुत्ताई, टकि उक्कीरियाणि व्व ॥३९७६।। तो सो दसन्नकूडो, तप्पभिई चिय समत्थलोबम्मि। पत्तो पर' पसिद्धि', गयऽग्गपयगो त्ति नामेण ॥३९७७।। इय तत्थ गयऽग्गपए, भय स महागिरी समणसीहो। चिरसुचरियसामन्नो, निस्सामन्नं तव का ॥३९७८।। जहविहिभावियभावण-निवहो कयभत्तपञ्चखाणो य। असुरसुरखयरमहिओ, मरि देवत्तमऽणुपत्तो ॥३९७९॥ एवं सव्वणं चिय, भववासविणासमऽभिलसंतेण। सुपसत्थभावणासु, पमायविरहेण जइयव्य ॥३९८०॥ इय चउकसायभयभ'जणीए, संवेगरगसालाए। आराहणाए मूलिल्ल-यम्मि परिकम्मविहिदारे ॥३९८१॥ पत्थुथपन्नरसण्हं, पडिदाराणं कमाऽणुसारेणं । भणियमिमं चोइसमं, भावणविसयं पडिदार' ॥३९८२।। सुपसत्थभावणाभावगी वि, नाऽऽराहणं खमइ काउ। जेण विणा तं भन्नइ, एत्तो संलेदमादारं ॥३९८३॥ ॥३०९॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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