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________________ संवेगरंगसाला ॥२६४॥ अहवा दंसणमाण - चरित्तसुद्धी य विषयसुद्धी य। आवासयसुद्धी वि य, पंचवियप्पा हवइ सुद्धी ॥३३९०॥ इंदिय कसाय २उवहीण, भत्तपाणस्स४ तह सरीरस्स । एस विवेगो भणितो, पंचविहो भावदव्वगता ॥ ३३९१ ॥ अहवा सरीर सेजा २ - संथारु ३वहीण भत्तपाणस्स ५ । वेयावच्चगराण य, एस विवेगो उ पंचविहो इय कयसव्वच्चागो, लीलाए हरइ मरणकाले वि। विजयपडायं सहसा, सहस्समल्लो व्व मुणिवसभो तहाहि संखउरंमि पुरवरे, अहेसि भूमिवई कणगकेऊ । नयसच्चचायसोंडीर - याऽऽईगुणरयणरयणि सेवाविह मि कुसलो, गुणाऽणुरागी य परमभत्तो य। नामेण वीरसेणो, तस्साहसी सेवगो एक्को सो पुण विणयपरक्कम - पमुहगुणाऽऽवञ्जिएण नरवइणा । गामसयजीवणं पिहु, दिजन्तं नो समीहेइ अह एगंमि अवसरे, सदेस सीमामड बनाहेण । दुग्गबलगव्विएणं, चोराहिवकालसेणेणं हीरंतं निजदेसं, निसामिउ जायगाढ कोवेणं । उब्बद्धमिउडीमीमा -ऽऽणणेण भणियं महीवइणा हो महन्त सामन्त- मन्तिसेणाहिवा ! सुहडपवरा !। कि कोवि कालसेणं, णिणिउ मे समत्थोऽत्थि अह जावज्ज वि सामन्त - पमिइगो नेव किंपि जंपति । देव! समत्थो ऽहं ताव, जंपियं वीरसेणेणं तो सविलासाए सपम्हलाए, वियसंतकुमुयसोहाए । दिट्ठीए सप्पसायं, पलोइओ सो नरि देणं सामिसपसायलोयण- पलोयणुऽप्पन्नगुरुपमोएण । पुणरवि तेणं भणियं देव ! विसज्जेसु मं एगं ॥३३९२॥ ॥ ३३९३ ॥ ॥३३९४॥ ।।३३९५|| ॥ ३३९६॥ ॥३३९७॥ ॥३३९८॥ ३३९९ ॥ ॥ ३४०० ॥ ॥३४०१ ॥ ॥३४०२ ।। ।। सर्वत्यागे सहस्रमल दृष्टान्तः । ॥२६४ ॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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