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________________ संवेगरंगसाला त्यागद्वारस्वरूपम् । ॥२६३॥ इय सुद्धबुद्धीसंजीवणीए, संवेगरंगसालाए। आराहणाए सिवपुर-पयट्टजणजाणतुल्लाए ॥३३७७॥ पढमदारनवमए, दुभेयपरिणामनामपडिदारे। साहुपरिणामनामो, भेओ बीओ वि परिकहिओ ॥३३७८॥ तब्भणणा पुण भणिय, परिकम्मविहिस्स मूलदारस्स। नवमं दुभेयजुयमवि, एयं परिणामपडिदारं ॥३३७९॥ सुहपरिणामेणं परि-णओ वि न विसेसचागविरहेण। आराहणमाऽऽराहिउ-मलं भवे अहिगओ सत्तो ॥३३८०॥ ता चागदारमऽहुणा, कित्तमो सो य चउविहो चागो। दव्वं खेत्तं कालं, भावं च पडुच्च नायव्यो ॥३३८१।। तत्थ य गिहिणा जइ वि हु, आराहणकरणमूलकाले वि। पुत्तदविणऽप्पणेणं, विहिओ च्चिय दव्वओ चागो॥३३८२॥ तह वि हु सरीरपरियण-उवहिप्पमुहाणि भूरिदव्वाणि। पडिबधाऽकरणेणं, सविवेसं वजणिजाणि ॥३३८३॥ तह खेत्तओ वि जइ वि हु, पुरा पुराऽऽगरगिहाऽऽइयं चत्तं। तह वि समीहियठाणे वि, तेणं मुच्छा विमोत्तव्या ॥३३८४॥ न य कालओ वि सरयाऽऽइएसु पडिबधब'धुरा बुद्धी। कायव्वा एवं चिय, भावंमि वि अप्पसत्यंमि ॥३३८५।। एवं संजमसाहण-मेत्तं मोत्तं समत्थमावि उवहिं। चयइ विसुद्धलेसो, मुणी वि मुत्ति' गवेसंतो ॥३३८६।। अप्पपरिकम्ममुवहि, बहुपरिकम्मं च दो वि वज्जेइ। सेजासंथाराई वि, उस्सग्गपयं गवसंतो ॥३३८७।। किचजे साहू पंचविहं, सुद्धिमलद्धण मुत्तिमिइच्छति। पंचविहं च विवेयं, ते हु समाहिं न पाति ॥३३८८॥ आलोयण१ सेजाए२, उवहीए३ तह य भत्तपाणस्स४। वेयावच्चकराण५ य, सुद्धी खलु पंचहा भणिया॥२३८९॥ ॥२६३॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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