SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 304
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संवेगरंगसाला धर्मजागरिव चिन्तनम् । ॥२६२॥ जावऽजवि अणुवहओ, इमो समग्गो वि इंदियग्गामो। जावजवि अणुकूला, दबकखेत्ताऽऽइसामग्गी ॥३३६५॥ जिणकप्पियाऽऽइविसय', विहारमऽब्भुजय कि.मणुसरिमो। अहवा विसिट्ठसंघयण-विसयमय न अम्हाणं ॥३३६६॥ ता अन्जकालियजइ-संघयणाऽणुसरिसं विसेस विहिं। विहिणा पडिवजामो, दुल्लहनरभवफलमिम ति ॥३३६७॥ एवं न केवलं चिय, साम नमुणी मुर्णण वसभो वि। निययाऽवत्थासरिसं, जग्गेजा धम्मजागरियं ॥३३६८॥ जहापरिवालिओ सुदीहो, परियाओ वायणा य मे दिना। निफाइया य सीसा, तदुचियमावि विहियमेवं च॥३३६९॥ जं अम्ह भूमिगाए, उचियं किच्च कर्मक.मेण तय। विहियं तय विसेसेण, अप्पणो किंपि कप्पेमि ॥३३७०॥ अच्चतदुप्परक्कम-पमायपरचक्कपारवस्सेण। जकिचि किच्चवग्गे, कयाऽकयत्तं तय चेच्चा ॥३३७१॥ चिरचरियवरणफरणस्स, चिरप्परूवियजिणि दधम्मस्स। १सेयं मझं संपइ, विसेसहियमऽप्पणो काउ' ॥३३७२॥ कितु अहालंदविहि, परिहारविसुद्धियं व जिणकप्पं । पाओवगमणमिं गिणी-भत्तपरिचाविहि वा वि ॥३३७३॥ सइ सामत्थे सइ आउगे य, अनिग्ग गू)हियऽत्तबलविरिओ। सइ सद्धासंवेगे, अहिगयजिणसमयसारस्सा ॥३३७४॥ पसमाऽऽइगुणगणाऽलं-कियस्स सीसस्स नियपयं दाउं। संठाविऊण य गणं, पडिवजामि इयाणीमऽहं ॥३३७५।। एवं वियारइत्ता, तुलिऊण य अप्पयं पयत्तेण। सेसाणमऽसत्तीए, भत्तपरिन्नाए कुणइ मई ॥३३७६॥ १ श्रेयः = उचितम् । ॥२६२॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy