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________________ संवेगरंगसाला आराधनामनोरथः। ॥२५९॥ अह भणियविहाणवसा, विन्नायाऽऽसन्नमरणसमयस्स। पजन्ताऽऽराहणविहि-मऽसेसमाऽऽराहिउमणस्स ॥३३२४॥ जम्मजरामरणदारुण-दीहरसंसारवासभीरुस्स। जिणवयणसवणजायत-तिव्वसंवेगसद्धस्स ॥३३२५|| पयईए चिय निच्च, सुस्समणोवासगस्स चित्तम्मि। पसमाऽऽइगुणसमिद्धस्स, भावणा भवइ किर एसा ॥३३२६॥ अहह कह परमाऽमय-कप्पे मह परिणए वि जिणवयणे। वसिउ जुजइ अञ्जपि, गिहवासे 'दुक्कियनिवासे ॥३३२७॥ धी! धी! मज्झ अणजस्स, इंदियऽत्थेसु संपउत्तस्स। परमत्थवेरिएसु वि, दाराऽऽइसु गाढरत्तस्स ॥३३२८॥ ते चिय धन्ना निजिणिय-मोहजोहा जिइंदिया सोमा। रागद्दोसविउत्ता, भवतरुनिसियाऽसिणो समणा ।।३३२९।। पिहियाऽऽसवा तवड्ढा, धणिय किरियासु संपउत्ता जे। सासयसेाकख मोकख, पडुच्च अब्भुञ्जमंति दढं ॥३३३०॥ ता कइया तं होही, दियह गीयत्थगुरुसमीवम्मि। जत्थ चरण पवज्जिय, मोकवऽथ उजमिस्सामि ॥३३३१॥ संपत्तेसु वि सेसेसु, सयलमोकखऽत्थसाहणंऽगेसु। सव्वविरई विणा कह, सासयसोक्खो भवइ मोकखो ॥३३३२॥ ता जावजवि छम्मास-वरिसपमुह ममाऽऽयं अत्थि। ता सव्वसंगचागेण, मोकखमग्गं अणुसरामि ॥३३३३॥ कह व चिरं चिट्ठउ ता, समभावठियस्स किर मुहुत्त पि। पव्वजपरिणई जइ, जायइ ता किं न पञ्जत्तं ॥३३३४॥ इय परिणामपरिणओ, सविसेसुल्लसियतिव्वसंवेगो। गंतूण गुरुसमीवे, अपावभावो भणइ भंते ! ॥३३३५॥ कारुनाऽमयनीसंद-सुदर भणियमाऽसि जं तुमए। आलोयणाइपुव्वं, पवजाऽऽई करेजासु ॥३३३६॥ १ दुकृतनिवासे । ॥२५९॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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