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संवेगरंगसाला
विद्यया मरणकालज्ञानम् आयुःपरिज्ञानद्वारसमाप्तिः
॥२५८॥
जंतप्पओगदार', निदसिय आउजाणणोवाय। एकारसम चरम, विजादार भणामिहि
॥३३११॥ विजामतकुऊहल-परो वि आराहगो तदपरो वा। सम्म जह सपरगय', कलेइ काल' तह भणामि ॥३३१२॥ विष्णसिऊण सिहाए, स्वा ॐ सीसे तहा क्षि चकूखुम्मि। पं ठविऊण य हियए, हा नाहीए नसित्तु तओ ॥३३१३॥ "ॐ जुसः ॐ मृत्युजयाय, ॐ वजपाणिने शूलपाणिने हर हर दह दह स्वरूपं दर्शय दर्शय हुं फट्" । एयाए विजाए, सुइभूओ दढमऽनन्नचित्तो य। अठ्ठत्तरसयवार, सम्म नयणेऽभिमंतित्ता ॥३३१४॥ अरुणोदयवेलाए, छाय' पि निय' तहाभिमंतित्ता। पट्ठीए ठावित्ता, आइच निच्चलसरीरा ॥३३१५॥ अह अप्पणिजमेव-ऽप्पणो कए परकए य परछायं। सम्म तक्कयपूओ, परमुवउत्तो पलोएज्जा
॥ पलाएजा ॥३३१६॥ जइ तं संपुन्न', चिय पासइ ता नत्थि मरणमाऽऽवरिस । कम-जंघ-जाणुविरहे, ति-दु-इगवारसेहि मरइ धुवं ॥३३१७॥ दसमासंऽतमि तदूरु-संखए कडिखए नवट्ठहिं च। मरइ तदुदरअभावे, मासेहिं पंचहि छहि वा ॥३३१८।। गीवाऽभावे चउतिदु-एक्कगसंखेहि मरइ मासेहि। पकूर - ककूखाण खए, बाहुखए दस दिणे जियइ ॥३३१९॥ खधखए अट्ठ दिणे, चउमासं जियइ हिययछिहत्ते। पहरदुर्ग चिय जीवइ, छायाए सिरोविहूणाए ॥३३२०॥ अह सबहा वि छाया-वोच्छेओ भवइ जोगिणो कहवि। ता तकखणमझे चिय, खिपं अकूखइ खयं नृणं ॥३३२१॥ एमाइणो अणेगा, जइवि उवाया निदंसिया समए। आउपरिन्नाणकए, तह वि हु लेसेण इह कहिया ॥३३२२॥ इय पडु पडिदार आउ-नाणदार भणित्तु सत्तमग'। वोच्छ अणसणसंथार-दिकखपडिवत्तिदारमह ॥३३२३॥
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