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संवेगरंगसाला
यन्त्रस्थापना यन्त्रस्वरूप
मावानं च।
॥२५७॥
अणतरगाहामइयजंतठवणा इमा
ॐकारगम्भमऽग्गेय-मंडल' कोणमज्झठियरेह ।
सोत्थियलंछियबाहिर-कोण सिहिजालजडिल' व ॥३३०१॥ साऽणुस्सारअगाराइ-छस्सरावेढियं च पासेसु । स्वाअकूखरमझगय', चउपासट्ठियगुरुजयार'
॥३३०२।। मारुयमंडलपरिवेढिय' च, कप्पेत्तु निययबुद्धीए । त पायतले हियए, सीसे संधीसु य नसेउ
॥३३०३॥ तो पट्ठीए सूर, काउ' सूरोदए चिय सुनिउण। सपराऽऽउनिच्छयकए, नियछाय' चिय पलोएजा ॥३३०४।। जइ संपुण्णं पासइ, आवरिसं ता न अस्थि मच्चुभय'। अह नियइ कन्नसुन्नं, ता जीवइ परिसबारसग ॥३३०५॥ करविरहे दस बरिसे, अंगुलिविरहे य अट्ठ वरिसाणि। खंधाऽभावे सत्त उ, पासाण अदंसणे तिन्नि ॥३३०६।। नासाविरहे वरिसं, केसाऽभावे य जियइ तप्पणग। सिरवियलच्छायाद-सणे नरो जियइ छम्मासं ॥३३०७।। गीवाविरहे मास, चिबुगाऽभावे य जियइ छम्मासं। एक्कारस चेव दिणाणि, दिट्ठीविरहे जियइ पुरिसो ॥३३०८॥ सच्छिड्डे पुण हियए, दीसंते सत्त वासरे जियइ । अह छायदुर्ग पासइ, जमपासे पडइ ता खिप्पं ॥३३०९॥ न्हायस्स य जस्संगाणि, कन्नपमुहाणि सचि सुक्क ति। पुचविहिभणियवच्छर-मासदिणेहिं स मरइ धुवं ॥३३१०॥ |
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