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________________ संवेगरंगसाला शत्रुञ्जये निर्वाणप्राप्तिः, अविहारपक्षेदोषाः, नृपस्य अनियतविहारविधिः। ॥१७१॥ को एस दुरायारो, म पाएK सिरेण घट्टेइ । तेणं भणियं भन्ते!, पंथगनामो अहं साह ॥२१७५।। खामेमि चउम्मासिय-मेक्कसि. खमह न पुणो इमं काहं । अह संवेगोवगओ, सूरी इय भणिउमाऽऽरद्वो ॥२१७६।। रसगारवाऽऽइविसविय-चेयणो सुठु बोहिओतुमए। पंथय ! ता कयमेत्तो, एत्थाऽवत्थाणसोक्खेण । ॥२१७७।। अह विहरिउमाऽऽरद्वो, स महप्पा अणिययाए वित्तीए । विहरंतो परियरिओ, पुणरवि पोराणसिस्सेहिं ॥२१७८।। कालंऽतरे य विहुणिय-रयमलो मलियपबलमोहभडो । सेत्तंजपव्ययम्मि, निव्वाणमऽणुत्तरं पत्तो ॥२१७९।। इय दोसगुणे नाउ, सीयल-उज्जयविहारचरियाए । अविहारपक्खमाऽऽसज्ज, को णु बट्टेज कुसलऽत्थी ॥२१८०॥ किंचपडिबन्धो लहुयत्तं, न जणुवयारो न देसविनाणं । नाऽऽणाऽऽराहणमेए, दोसा अविहारपक्खम्मि ॥२१८१॥ कालाऽऽइदोसओ पुण, न दव्वओ एस कीरइ नियमा । भावेण उ कायव्यो, संथारगवच्चयाऽईहिं ॥२१८२।। इय पावकलिलजलविब्भमाए, संवेगरंगसालाए । परिकम्मविहीपामोक्ख-चउमहामूलदाराए ॥२१८३॥ आराहणाए पनरस-पडिदारमयस्स पढमदारस्स । अणिययविहारनाम, सत्तमदारं समत्तमिमं ॥२१८४॥ अणिययविहारचरिया, एसा गिहिसाहुगोयरा भणिया। संपइ नरिंदविसयं, एयं चिय कि पि कित्तेमि ॥२१८५।। जम्हा को वि हु चिरभूरि-सुकयसंभारभाविकल्लाणो । नरनाहो वि य होउ, अच्चंतं पसमरसरसिओ ॥२१८६।। परलोयभीरुचित्तो, सम्मं विसकप्पकलियविसयसुहो । मोक्खसुहबद्धबुद्धी, आराहणकरणमीहेजा ॥२१८७॥ ॥१७॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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