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________________ संवेगरंगसाला ॥१७०॥ तत्तो कयसिंगारो, सहस्सनरवाहिणीए सिवियाए । आरूढो पंथयपमुह-मंतिसयपंचगाणुगओ २१६२॥ गन्तृण गुरुसमीवे, उज्झियसंगो पवनइ दिक्खं । संवेगसारमणुदिण-मुज्जमइ य धम्मकम्मेसु ॥२१६३॥ कालक्कमेण एक्कारसाऽवि, अंगाणि सो अहिज्जेइ । दुक्करतवकरणपरो, विहरइ य महीए वाउ व्व ॥२१६४॥ अह पंथगपमुहाण, पंचण्ह मुणिसयाण सुयसूरी । तं सूरित्ते ठविउ, साहुसहस्सेण परियरिओ ॥२१६५॥ विहरित्ता बहुकालं, पुंडरियमहानगे कयाऽणसणो। असुरसुरविहियपूओ, निव्वाणपयं समणुपत्तो ॥२१६६॥ सो पुण सेलगसूरी, तवोविसेसेहिं अरसविरसेहिं । पाणेहि भोयणेहि य, जातो चम्मऽट्ठिमेत्ततणू। ॥२१६७॥ गहिओ रोगेहि पि य, तहाऽवि सत्ताहिओ त्ति विहरंतो। सेलगपुरे पहुत्तो, समोसढो मिगवणुजाणे ॥२१६८॥ पीइपडिबन्धेण य मड्डुगो, निवो वन्दणट्ठया पत्तो । सोऊण य धम्मकहं, पडिबुद्धो सावगो जातो ॥२१६९।। अह सो सूरि दडूं, सरोगमच्चंतकिससरीरं च । जंपेइ अहं भन्ते !, अहापवत्तेण तेगिच्छं ॥२१७०॥ कारेमि तुम्ह एसणिय-भत्तपाणोसहाइएणं ति। पडिसुणियं मुणिवइणा, कारविया तयणु से किरिया ॥२१७१॥ अह पगुणीभूयतणू वि, पबलरसगारवाऽऽइपडिबद्धो । सूरी मुणिगुणविमुहो, तत्थेव द्वाउमाऽऽरद्धो ॥२१७२॥ पंथगवज्जेहिं ततो, परिचत्तो सेसएहि साहूहि । अह चउमासगरयणीए, निब्भरं सुहपसुत्तो सो ॥२१७३॥ चउमासियाइयारं, खामे पंथगेण सीसेणं । छिक्को चलणेसु ततो, झत्ति विउदो भणति कुद्धो ॥२१७४॥ शैलकस्य ग्लानत्वम् औषधादिना नीरोगत्वम् रसादिगृद्धिः चातुर्मासिकक्षामणेन संवेग प्राप्तिश्च । ॥१७॥ 44340.
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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