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________________ संवेगरंगसाला अनियतविहारस्वरूपं तस्य विधिश्च । ॥१६॥ अनिययविहारमेत्तो, ता कित्तेमो समत्थदोसहरं । जं सोचा परिचइउ', आलस्समध्वस्समुज्जुत्तो ॥२०४५|| वसहीसु य उवहीसु य, गामे नयरे गणे य सन्निजणे । सव्वत्थ अपडिबद्धो, विसुद्धसद्धम्मकरणरई ॥२०४६॥ सइ अनिययं विहारं, करेज साहू विसेसगुणकंखी । तित्थजत्ताऽऽइकरणे, जएज तह सावगो वि सया ॥२०४७॥ जम्हानिययविहारो, सक्खं चिय नत्थि किर गिहत्थस्स। किन्तु गिहत्थो वि अहं, दव्यत्ययसारमारेह ते ॥२०४८॥ निकूखमणपमुहतित्थेसु, ताव वंदामि तो पवजिस्सं । चिच्चा संगमसेस, आराहणमऽहव पव्वजं ॥२०४९॥ एवं विहबुद्धीए, पसत्थतित्थेसु वच्चमाणस्स । सुट्ठियगवेसणं वा, कुणमाणस्स य भवे सो वि ॥२०५०॥ तत्थ य जो पव्वज्जं, काउ' आराहणं समीहइ से । सुट्ठियगवेसणं गण-संकमदारे निदंसिस्सं ॥२०५१।। जो पुण गिहडिओ चिय, आराहणमेकमेव काउमणो । सुट्ठियगवेसणविही, वत्तव्यो तस्स इह चेव ॥२०५२॥ अह साहुसावयाणं, सव्वाण वि जिणमयाऽणुसारीणं । खित्ताओ खित्तमऽन्न, गच्छंताणं विही एसो ॥२०५३।। किर जस्स जेण सद्धि, मणसा वयणेण अहव काएणं । कि पिकयं कारियमणु-मयं च जं दुक्कडं अत्थि।।२०५४॥ थेवं पि तं समत्थं, सम्मं खामेइ समाहिमग्गंतो !। मा होउ कहवि मरणा-इए वि वेराणुज्वन्धो त्ति ॥२०५५।। जइ ताव मुणी गंता, वंदित्ता मूरिणो सउज्झाए । परियायलहू पुण सेस-ए वि समणेऽभिवंदित्ता ॥२०५६॥ इय भणइ जहाहं तुज्झ, सन्तियं चेइयाण साहूणं । संघस्स य नयराईसु, गच्छंतो बंदणं काहं ॥२०५७।। अहवा गंता जेट्ठो, तो तं वंदित्तु विति ठियसमणा । अम्हच्चयं करेजसु, चेइयसाहूण वंदणयं ॥२०५८॥ ॥१६॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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