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संवेगरंगसाला
मालिक-चौरराक्षसेभ्यः कन्यायाः
मुक्तिः गृहस्वामिनीत प्राप्तिश्च ।
॥१३१॥
रणरणिरदीहदंतो, दूरपसारियरउद्दमुहकुहरो । चिरहिएणं लद्धासि, एहि एहि ति जंपन्तो
॥१६५८॥ अञ्चन्तभीसणंऽगो, समुट्ठिओ रक्खसो सुदुप्पेखो । तेणाऽवि करे धरिया, कहिओ तीए य सब्भावो ॥१६५९।। पामुक्का आरामे, गंतूणं बोहिओ सुहपसुत्तो । मालागारो भणिओ य, सुयणु ! साऽहं इहं पत्ता ॥१६६०।। एवंविहरयणीए, साऽऽभृसणा कह समागया तं सि । इय तेणं सा पुट्ठा, सिट्ठ तीए य जहवित्तं ॥१६६१॥ अव्वो ! सच्चपइन्ना, १महासईम त्ति भावमाणेण । चलणेसु निवडिऊगं, मालागारेण तो मुक्का ॥१६६२॥ पत्ता रकूखसपासे, सिट्ठो से मालियस्स वुत्तन्तो । अव्वो ! महप्पभावा, एसा जा उज्झिया तेण ॥१६६३॥ इति भातेण निवडिऊण, पाएसु तेण वि विमुक्का । चोरसमीवे य गया, सिट्ठो तह पुव्ववुत्तन्तो ॥१६६४॥ तेहि वि अणप्पमाहप्प-दसणुप्पन्नपखवाएहिं । सालंकार च्चिय वंदि-ऊण सगिहम्मि पट्टविया ॥१६६५।। अह आभरणसमेया, अक्खयदेहा अभग्गसीला य । पत्ता पइस्स पासे, कहियं सव्वं जहावित्तं ॥१६६६॥ परितुट्ठमणेण समं, तेण पसुत्ता समत्थरयणि पि । जाए पभायसमए, चिंतियमिय मंतिपुत्तेण ॥१६६७।। छंदट्ठियं सुरूवं, समसुहृदुक्खं अनिग्गयरहस्सं । धन्ना सुत्तविउद्धा, मित्तं महिलं च पेच्छति ॥१६६८॥ इति भावेंतेण कया, घरस्स सा सामिणी समग्गस्स । किंवन कीरइ निक्कवड-पेमपडिबदहिययम्मि ॥१६६९।। इय पइतक्कररक्खस-मालागाराण मज्झओ केण । तच्चागेण कयं दुक्कर ति भो ! मज्झ साहेह ॥१६७०॥ १ महासती इयम् ।
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