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________________ संवेगरंगसाला श्रावकगुणाः श्रावकदिनकृत्यं च। ॥१२१॥ पडुपवणंऽदोलियकयलि-पत्तपडिबद्धतोयबिंदु व । सुविणिच्छिऊण भंगुर-मा तारुन्नमऽत्थं च ॥१५२६॥ पयइविणीओ पयईए, भद्दओ पयइपरमसंविग्गो । पयईउदारचित्तो, पयइजहुक्खित्तभरधवलो ॥१५२७॥ निच चिय साहम्मिय-वच्छल्ले जुन्नचेइउद्घारे । परपरिवायच्चाए, जएज सुस्सावगो मइमं ॥१५२८॥ निदाविरमम्मि तहा, सम्मं कयपंचमंगलविहाणो । अणुसरणपुव्वयं उद्वि-ऊण उचियं च काऊण ॥१५२९।। संखेवेणं पि हु वीय-रायपडिमाउ वंदिउँ सगिहे । गच्छेन्ज साहुवसहिं, करेज आवस्सयाइ तहिं ॥१५३०॥ एवं हि कीरमाणे, जिणाणमाऽऽणा कया हवइ सम्मं । गुरुपरतंतत्तं सुत्त-अत्थसविसेसनाणं च ॥१५३१॥ जहठियसामायारी-कुसलत्तमऽसुद्धबुद्विविगमो य । गुरुसकिखओ य धम्मो, संपुष्णविही य होइ कया ॥१५३२॥ साहूण असइ वसही-सकिन्नत्ताइकारणेहि वा । गुरुणा समणुनाओ, पोसहसालाईसु वि कुजा ॥१५३३॥ सज्झायं काऊणं, खणं अपुव्वं पढेज सुत्तं पि । तत्तो य विणिक्खमिउ, होऊण य दव्वभावसुई ॥१५३४॥ पढमं नियगेहे च्चिय, निच्च चिइवंदणं समयविहिणा । विभवाष्णुसारिपूया, पुव्वमऽणुद्वेज गोसम्मि ॥१५३५।। तयणतरं तु जइ ता, तहाविहं तस्स नथि गिहकिच्च । ता तव्वेलं चिय कय-सरीरसुद्धी सुनेवत्थो ॥१५३६।। पुष्फाइपवरपूयंग-वग्गहत्थेण परियणेण समं । वच्चेज जिणिदगिहे, पंचविहाभिगमपुव्वं च ॥१५३७॥ तत्थ पविसित्तु विहिणा, उदारपूयापुरस्सरं सम्मं । चिइवंदणं करेजा, पणिहाणंऽतं सुसंविग्गो ॥१५३८॥ अह कारण केमावि, जिणवरभवणम्मि अहव नियगेहे । पोसहसालाए वा, हवेज सामाइयाऽऽइ कयं ॥१५३९॥ ॥१२१॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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