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________________ संवेग-रंगसाला ॥११४॥ तिसिओ विहु सलिलाइय-मवलोयन्तो वि जाव न पयट्टो । पिवणाऽऽइकिरियाए, 'तत्तित्तिफलं न ता लहइ || १४३६ ॥ अग्गट्ठियइट्ठरसोववेय-भोयणतडोवविट्ठो वि । हत्थमवावारिन्तो, नाणी वि हु मरह भुकूखाए ॥१४३७॥ अइपंडिओ वि वाई, आहसिय परं गतो निवसभाए । वयणमवावारिन्तो न लहइ अत्थं सलाहं च ॥१४३८॥ इय इहलोयफलं पर, जह बुत्तो तह भवन्तरफलं पि । आसज्ज सो श्चिय विही, जओ जिणि देहिं भणियमिणं ॥ १४३९॥ चेइयकूलगणसंघे, आयरियाणं च पत्रयणसुए य । सव्वेसु वि तेण कथं, तवसंजममुञ्जमन्तेण 11288011 इय जह खाओवसमिग-चरणस्स तहेव खाइगस्सावि । सम्मं पगिट्ठफलसाह - गत्तणं होइ विन्नेयं ॥१४४१॥ जम्हा अरिहन्तस्स वि, पत्तस्स वि विमलकेवलाऽऽलोयं । नो ताव नाणओ च्चिय, संपजइ मुत्तिसंपत्ती ॥१४४२॥ जाव न समत्थकम्मिं - धणग्गितुल्ला परा विसुद्धिकरी । लहुपंचक्खरसंगिरण - मेत्तकालप्यमाणट्टिई ।।१४४३॥ नीसेसाऽऽसवसंवर-रूवा एत्थं अपत्तपुव्वा य । सेस किरियापहाणा, पत्ता चारित किरिय नायं च एत्थ सोच्चि, सुरिंददत्तो न जह मुणन्तो वि । राहं विधतो ता, परे व्व हीलापयं हुंतो ॥। १४४५॥ तम्हा इहपरलोइय - फलसंपत्तीए कारणमवंझं । आसेवासिक्ख च्चिय, ता इह जत्तो न मोत्तव्वो एवं च नागकिरिया - एहि उद्दिमुभयपक्खे वि । सिद्धंतुद्दिट्ठविचित्त - जुत्तिनिविहं निसामेत्ता एत्थ मांसला मोय - मणहरं फुडियकेयईकोसं । अन्नत्तो दरविदलिय - मवलोइय मालईमउलं १ तत्तृप्तिफलम् । ।। १४४४ ।। ॥१४४६॥ ॥१४४७॥ ।।१४४८।। आसेवनायाः माहात्म्यम् । ॥११४॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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