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________________ संवेगरंगसाला तृतीय-शिक्षाद्वार-स्वरूपम्। ॥१०५॥ तो भग्गा बलिऊणं, रन्ना नयरी विडम्बिओ लोगो । अवडम्मि निवडिओ चेड-गो य जिणपडिममाऽऽदाय ॥१३१८॥ इय एवंविहगिरिगरुय-पावरासिस्स भायणं जाओ । जं कूलवालगो सुगुरु-पच्चणीयत्तदोसेण ॥१३१९॥ जच सुदुक्करतवचरण-करणनिरओ वि रन्नवासी वि । भग्गपइन्नो जाओ, तमऽसेसं गुरुपओसफलं ॥१३२०॥ तेणं सविसेसमिण, लिंग गुरुपयपसायणारूवं । आराहणाऽरिहाणं, भन्नइ कयमिह पसंगण ॥१३२शा इय निव्वुइपहसंदणसमाए, संवेगरंगसालाए । परिकम्मविहीपामोकूख-चउमहामूलदाराए ॥१३२२॥ आराहणाए पन्नरस-पडिदारमयस्स पढमदारस्स । लिंगाभिहाणमेयं, अकखायं बीयपडिदारं ॥१३२३।। पुवुत्तलिंगजुत्ता वि, सम्ममाऽऽराहणं न पावेंति । जम्हा विणा इमीए, ता एत्तो भण्णए सिक्खा ॥१३२४॥ गहणाऽऽसेवणतदुभय-भेएहिं सा भवे तिहा तत्थ । नाणब्भाससरूवा, सिक्खा बुच्चइ गहणसिक्खा ॥१३२५।। सा य जहन्नेण जइस्स, सावयस्स य पडुच्च सुत्तत्थे । अट्ठ उ पवयणमाया, जाव भवे तुच्छमइणो वि ॥१३२६।। उक्कोसेणं साहस्स, सुत्तओ अत्थो य होइ इमा । पवयणमायाइविंदु-सारपुव्वाऽवसाण ति ॥१३२७।। जावं छञ्जीवणियं, उक्कोसा सुत्तओ गिहत्थस्स । अत्थं पडुच्च पिंडेस-णाऽवसाणा स किर जेण ॥१३२८।। पवयणमाया हिगम, विणा वि सामाइयं कह करेज । छज्जीवणियानाणं, विणा य कह रक्खइ जीवे ॥१३२९।। पिंडेसणऽत्यविनाण-विरहओ कह व देज समणाणं । फासुयएसणियाई, पाणाऽसणवत्थपत्ताई ॥१३३०॥ इय घोरभवऽन्नवतरण-तरीसमुद्दामपायडपहावं । पुन्नाऽणुबंधिपुण्णाण, कारणं परमकल्लाणं ॥१३३१॥ ॥१०५॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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