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________________ संवेगरंगसाला पल्लिपतिराज्ञीसंवादः। ॥८३॥ अभिगमसु ममं संपइ, सेसा तुह चिन्तियत्थसंपत्ती । एत्तो चिय नीसेसा, सविसेसा होहिइ अचिरा ॥१०३९।। कि नो पेच्छसि अच्चंत-निम्मलुम्मिल्लरयणपहपसरं । आभरणमालियं एत्थ सुहय !, एयाए तं सामी ॥१०४०॥ इय तीए गिरं सोऊण, जापियं वंकचूलिणा सुयशु !। का सि तुमं किमिहेच्छसि, को वा तुह पाणनाहो त्ति ॥१०४१।। तीए भणियं भद्दय !, महानरिंदस्स अग्गमहिसी हं । कयकोवा नरनाहे, एवं एत्थावसामि त्ति ॥१०४२॥ पुव्वग्गहियाभिग्गह-मणुसरिऊणं पयंपियं तेण । जइ नरवइणो भन्जा, ता मह जणणि व्व होसु तुमं ॥१०४३॥ ता मा महाणुभावे ! पुणरवि एवं समुल्लविजासि । मइलिजइ जेग, कुलं कुलप्पसूयाण तमऽकिच्च ॥१०४४॥ अहह महामुद्ध ! किमेव-मऽणुचिय वाउलो ब्व वाहरसि । इय निब्भच्छंतीए तीए, सकोवाए भणिओ सो ॥१०४५॥ जं सुमिणे वि न पेच्छसि, भूवइभज पि तमहुणा पत्तं । कि मूढ ! नोव जसि, पडिभणिय तेण एत्ताहे ॥१०४६॥ अम्ब ! विमुच ग्गाहं, मणसावि हु चिंतियं न जुत्तमिमं । वरमुग्गविसं खइय', मा कयमेवंविहमकज ॥१०४७॥ वयणपडिकूलणावस-सविसेसविसप्पमाणकोवाए । पयडक्खरेहिं भणिय, देवीए तं पडुच्च इमं ॥१०४८॥ होसि वसे मज्झ तुमं, हयास ! नूगं विडम्बिओ संतो । जाइस्सइ सग्गं नग्ग-१खवणओ नवरि २ विग्गुत्तो॥१०४९।। अह तेणं सा भणिया, अम्बा अम्ब ति पुत्रमुल्लविङ । तुममेव संपयं कह, जायं भणिऊण सेवेमि ॥१०५०॥ एयं च तदुल्लावं, कडगंऽतरिओ समग्गमवि सोचा। देवीपसायणट्ठा, चिरागओ चितए राया ॥१०५१॥ १ नमक्षपणकः = नमसाधुः । २ विगोपितः । तिन ॥८॥ .
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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