SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वन्दे जिनवरम् । अथ लघु - संघयणि-प्रकरणम् । गाहा । नमिय जिणं सवन्नुं, जगपुज्जं जगगुरुं महावीरं । जंबुद्दीवपयत्थे, वुच्छंसुत्तास परहेउं ॥ १ ॥ अर्थ - ( जगपुजं ) तीन जगत् के पुज्य ( जगगुरुं ) तीन जगत्के गुरु, ऐसे (सद्यन्न ) सर्वज्ञ ( जिणं ) श्री जिनेश्वर ( महावीरं ) महावीर स्वामीकों ( नमिय) नमस्कार करके, (जंबुद्दीव) जंबुद्वीपके अंदर रहे हुए शास्वते, ( पयत्थे ) पदार्थ उनको ( सुत्ता) सुत्रसें जाणकर (सपर हेउं ) स्वपर हितार्थ ( वुच्छं ) कहुंगा ॥ १ ॥ भावार्थ-तीन जगत्के पुज्य और गुरु ऐसे सर्वज्ञ श्री महावीरस्वामिको नमस्कारकर जंबुद्वीपमें रहे शास्वते पदार्थ उनको स्वपर हितार्थ कहुंगा ॥ १ ॥
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy