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________________ अर्थ दंडकप्रकरणम् + सहितम् ॥३९॥ (पुढवीआउवणस्सइ) पृथ्वीकाय अप्काय और वनस्पतिकायके (मज्झे) विषे (नारयविवज्जियाजीवा) नारकके जी-| वोंको वर्जके (सबेउववजंति) और सर्व जीवो उत्पन्न होते है (नियनियकम्माणुमाणेणं) अपने अपने कर्मानुसारे ॥३४॥ पुढवाइदसपएसु, पुढवीआउवणस्सईजंति । पुढवाइदसपएहिय, तेउवाउसुउववाओ ॥ ३५॥ | (पुढवाइदसपएसु) पृथ्वीकायादि दश पदके विषे (पुढवीआउवणस्सईजंति) पृथ्वीकाय अप्पकाय और वनस्पति&ाकायके जीवो सब होते है (पुढवाइदसपएहिय ) और पृथ्वी कायांदि दश पदमेंसे निकले हुये जीवों (तेउवाउसुउव-1 वाओ) तेउकाय और वाउकायके विषे उत्पन्न होते है ॥ ३५ ॥ तेउवाउगमणं, पुढवीपमुहम्मिहोइपयनवगे । पुढवाइठाणदसगं, विगलाइंतियतहिंजंति ॥ ३६॥ | (तेउवाउगमणं) तेउकाय और वाउकायकाजाना (पुढवीपमुहम्मिहोइपयनवगे) पृथ्वीकायादि नवपदके विषे होता है (पुढवाइठाणदसगं) पृथ्वीकायादि दश स्थानकके जीवों (विगलाइंतियतहिंजंति) तीन विकलेन्द्रिमें उत्पन्न होवे तैसे | जावे है ॥३६॥ गमणागमणंगप्भय, तिरिआणंसयलजीवठाणेसु । सवत्थजंतिमणुआ, तेउवाऊहिंनोति ॥ ३७॥ | | (गमणागमणंगप्भयतिरिआणंसयलजीवठाणेसु) गर्भजतिथंचका जाना आना सब दंडकोके विषे होता है ( सवत्थ ACCORD ॥३९॥
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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