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ACANCELLA0440200
जावे तोभी स्नानादिककी इच्छा न करे १८ (सकारपरीसहा) सत्कारपरिसह, उत्कर्षमें न आवे, स्तुति करणेपर समपरिणाम रखे १९ (पन्ना) प्रज्ञा इस लिये बडी विद्वत्ता होनेपरभी मुनि घमण्ड न रखे २० (अन्नाण) अज्ञानपरि|सह अज्ञानके उदयसें मुनि दुर्ध्यान न करे २१ (सम्मत्तं) सम्पक्त्वपरिसह (इअ) इस प्रकारसें (बावीसपरीसहा)। बावीशपरिसह जाणना २२ ॥ २८॥ ___खंतीमदवअज्जव मुत्तीतवसंजमेअबोधल्वे । सच्चंसोअंअकिंचणंच बंभंचजइधम्मो ॥ २९॥ | (खंती) क्षमा सब प्राणीमात्रपर सम दृष्टी रखे किन्तु यति कोइपर क्रोध न रखे १ (मद्दव ) मानका त्याग करना उसको मार्दवधर्म कहते है २ (अज्जव) किशीके साथ कपट नहि रखना सो आर्जवधर्म ३ (मुत्ती) निरलोभता ४ (तव) तप जो इच्छाका निरोध करना वही तप ५ (संजमे) सत्तरे प्रकारे संयमका आराधनकरना वही संयम ६ (अ) और (बोधवे) जानना (सच्चं) सत्यधर्म ७ (सोअं) मनआदिको पवित्ररखना वह शौचधर्म ८ (अकिचणं) बाह्य अभ्यन्तर परीग्रहका त्याग सो अकिंचनधर्म ९ (च) और (बंभं) द्रव्यसें और भावसें जो मैथुनका त्याग करना वह ब्रह्मचर्यधर्म १० (जइधम्मो) ऐसे दशप्रकारे यतिधर्म पाले उसको यति कहना योग्य है ॥ २९॥
पढममणिच्चमसरणं संसारोएगयायअन्नत्तं । असुइत्तंआसवसंवरोअ तहनिजरानवमी ॥ ३०॥ | (पढममणिच्चं) प्रथम अनित्यभावना इस भावनामें भव्यजीव ऐसा विचारे कि धन यौवन आदि सब पदार्थ अनित्य
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