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________________ ॥ अथ नवतत्त्वप्रकरणप्रारंभः ॥ AAAAAAACANC ध्यात्वा नवपदी भक्त्या, नवतत्त्वानां विवरणं, बालानां सुखबोधाय, क्रियते लोकभाषया ॥१॥ जीवाऽजीवापुण्णं पावाऽसवसंवरोय निजरणा । बंधोमुक्खोय तहा नवतत्ता हुँति नायवा ॥१॥ (जीवा) जीवतत्त्व १ द्रव्य और भावप्राणको धारण करनेवाला (अजीवा) ज्ञान-चेतनासें रहित सो अजीव तत्त्व २ (पुण्णं) शुभ फलका जो भोगना वह पुण्य तत्त्व ३ (पावा) अशुभ फलको जो भोगना वह पापतत्त्व ४ (आसव) जो शुभाशुभ कर्मका आना वह आश्रवतत्त्व ५ कहलाता है (संवरो) जो शुभाशुभ कर्मको रोकना वह संवरतत्त्व ६ कहलाता है। (य) और (निजरणा) जो आत्मध्यानसें शुभाशुभ दोन कर्मको बालके भस्मीभूत करके सर्वथा नही लेकीन देससे उडादेना वह निर्जरातत्त्व ७ (बंधो) जो शुभाशुभ कर्मका खीरनीरकी तरह आत्मप्रदेशकी साथ बंधहोना वह बंधतत्त्व ८ (मुख्खो) सर्वथा कर्मोसें जो मुक्तहोना सो मोक्षतत्त्व ९ (य) फिर (तहा) तेसे (नव) नव (तत्ता) तत्त्व याने रहस्य (हुति) है (नायबा) जानना ॥१॥ चउदसचउदसबायालीसा बासीयहंतिबायाला। सत्तावन्नंबारस चउनवभेयाकमेसि ॥२॥ (चउदस) जीवतत्त्व १ का चौदह भेद (चउदस) अजीवतत्त्व २ का भी चौदह भेद (बायालीसा) पुण्यतत्त्व ३ -RANAGAR
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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