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________________ जीवविचार ॥ १९ ॥ उचित सामग्री - मनुष्य - जन्म और सम्यक्त्व - सच्ची श्रद्धाभी प्राप्त हुई है इसलिये हे भव्य जीवो! प्रमाद न करके, महापुरुषोंने जिस धर्मका सेवन किया है उसका तुम भी सेवन करो; क्योंकि विना धर्मकी सेवा किये तुम जन्म-मरणके जञ्जालसे नहीं छूट सकोगे. सो जीववियारो, संखेवरुईण जाणणाहेउं । संखित्तो उद्धरिओ, रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ ॥ ५१ ॥ ( संखेवरुईण ) सङ्क्षेपरुचियोंके - अल्पमतियोंके ( जाणणा हेउं ) जाननेकेलिये ( रुद्दाओ ) रुद्र - अतिविस्तृत ( सुयसमुद्दाओ ) श्रुतसमुद्रसे ( एसो ) यह (जीववियारो ) जीवविचार ( संखित्तो ) सङ्क्षेपसे (उद्धरिओ) निकाला गया ॥ ५१ ॥ भावार्थ- सिद्धान्तों में जीवोंके भेदआदि विस्तारसे कहे गये हैं इसलिये अल्प बुद्धिवाले लाभ नहीं उठा सकते; उनके जाननेकेलिये सङ्क्षेपमें यह "जीवविचार" सिद्धान्तके अनुसार बनाया गया है, इसके बनानेमें अपनी कल्पनाको स्थान नहीं दिया गया. 3 जीवविचारसार्थ समाप्तः । भाषाटीकासहित. ॥ १९ ॥
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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