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________________ जीव विचार ॥१५॥ भावार्थ-देव और नरकवासी जीव, अधिकसे अधिक, तेतीस सागरोपम तक जीते हैं और चतुष्पद तिर्यञ्च तथा भाषाटीमनुष्य तीन पल्योपम तक; ये तिर्यञ्च तथा मनुष्य देवकुरु आदि क्षेत्रोंके समझना चाहिये. देव तथा नारक जीवोंकाकासहित. जघन्य आयु-कमसे कम आयु-दस हजार वर्षका है। मनुष्य तथा तिर्यञ्च जीवोंका जघन्य आयु, अन्तर्मुहुर्तका है. जलयर-उरभुयगाणं, परमाऊ होइ पुवकोडीऊ । पक्खीणं पुण भणिओ, असंखभागो अपलियस्स ३७| (जलयर-उरभुयगाणं) जलचर, उरःपरिसर्प और भुजपरिसर्प जीवोंकी (परमाऊ) उत्कृष्ट आयु (पुबकोडीऊ) |एक करोड़ पूर्व है, (पक्खीणं पुण) पक्षियोंकी आयु तो (पलियस्स ) पल्योपमका (असंखभागो) असंख्यातवाँ भाग ६ जितनी (भणिओ) कहा है ॥ ३७॥ भावार्थ-गर्भज और सम्मूछिम ऐसे दो प्रकारके जलचर जीवोंका तथा गर्भज, उरम्परिसर्प और भुजपरिसर्प जीवोंकी उत्कृष्ट आयु एक करोड़ पूर्व है; गर्भज पक्षियोंका आयु पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग जितना है. हसवे सुहुमा साहा-रणा य, संमुच्छिमा मणुस्सा य । उक्कोस जहन्नेणं, अंतमुहुत्तं चिय जियंति ॥३८॥|| (सबे ) सम्पूर्ण (सुहमा) पृथ्वीकाय आदि सूक्ष्म (य) और (साहारणा) साधारण वनस्पतिकाय (य) और (संमुच्छिमा मणुस्सा) संमूछिम मनुष्य (उक्कोस जहन्नेणं) उत्कृष्ट और जघन्यसे (अंतमुहुत्तं चिय) अन्तर्मुहूर्त ही (जियंति) जीते हैं ॥ ३८॥ C+%ERSONAGACAAACAN "
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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