SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भावार्थ – समुच्छिमओर गर्भज मत्स्य और गर्भज सर्पका शरीर-मान एक हजार योजनका है; इस प्रकारके मत्स्य स्वयम्भूरमण समुद्रमें होते हैं तथा सर्प मनुष्य-क्षेत्र से बाहर होते हैं. गर्भज पक्षिओंका शरीर-मान धनुषपृथक्त्व है अर्थात् दो धनुषसे लेकर नव धनुष तक है. गर्भज न्योला, गोह आदि भुजपरिसर्प जीवोंका शरीर-मान, गव्यूत- पृथक्त्व है अर्थात् दो कोससे लेकर नव कोस तक है. सम्मूच्छिम खेचर तथा भुजपरिसर्प जीवोंका शरीरमान, धनुष - पृथक्त्व है. सम्मूच्छिम उरः परिसर्प जीवोंका शरीरमान, योजन-पृथक्त्व है. सम्मूच्छिम चतुष्पद-चार पैरवाले जीवोंका शरीर-मान गव्यूत - पृथक्त्व है. प्र० - पृथक्त्व किसको कहते हैं ? उ०- दोसे लेकर नव तककी संख्याको पृथक्त्व कहते हैं. छच्चेव गाउआई, चउप्पया गब्भया मुणेयवा । कोसतिगं च मणुस्सा, उक्कोससरीरमाणेणं ॥ ३२ ॥ ( चउप्पया गन्भया ) चतुष्पद गर्भजोंका शरीर-मान ( छच्चेव गाउआई ) छह कोसका ( मुणेयबा ) जानना (च ) और ( मणुस्सा ) मनुष्य ( उक्कोससरीरमाणेणं) उत्कृष्ट शरीरमानसे (कोसतिगं ) तीन कोसके होते हैं ॥ ३२ ॥ भावार्थ – देवकुरु आदि क्षेत्रों में चतुष्पद गर्भज हाथीका शरीर-मान छह कोसका है तथा देवकुरु आदिके युगलीया मनुष्योंके शरीर की ऊँचाई, अधिकसे अधिक तीन कोसकी होती है. ईसाणंत सुराणं, रयणीओ सत्त हुंति उच्चत्तं । दुग-दुग-दुग-चउ- गेवि, जणुत्तरे इक्किक्क परिहाणी ॥ ३३ ॥
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy