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________________ A नयचक्रसार मूळ ॥१२२॥ ROSAROSSRESAS RASES छ द्रव्यना सर्वपर्यायने एकसमयमा प्रत्यक्ष जाणे. माटे जो द्रव्यमां वक्तव्यपणो न होयतो श्रुतज्ञाने ग्रहणथाय नही बालावअने जे ग्रंथाभ्यास, उपदेशादिक, सर्वकाम थाय छे तेतो एम नथी माटे द्रव्यमां व्यक्तव्यपणो छे. बोधसहित - अवक्तव्याभावे के० अवक्तव्यपणाने न मानियें तो अतीतपर्याय ते वस्तुमां कारणतानी परंपरामा रह्या छे, तथा अनागतपर्याय सर्व योग्यतामा रह्या छे ते सर्वनो अभाव थाय, तेवारें वस्तुमा वर्तमानपर्यायनी छति पामिये तेथी अतीत अनागतनो ज्ञान थाय नही, माटे अवक्तव्यस्वभाव अवश्य मानवो अने वर्तमान सर्वकार्य ते निराधार थइ जाय अने द्रव्यमां एकसमयमा अनंता कारण छे ते अनंता कारणना अनंता कार्य धर्म छे अने अनंता कार्यना अनंता कारणपरंपरानुं ज्ञान ते केवलीने छे अने वर्तमानकालें कारणधर्म तथा कार्यधर्मथी अनंतगुणा कारण कार्यनी योग्यतारूप सत्ता छे ते कोइना अविभाग नथी पण अविभागी जे ज्ञानादिक गुण तेमां अनंता कारणधर्म अनंता कार्यधर्म उपजवानी | योग्यतारूप सत्ता छे ते सर्व अवक्तव्यरूप छे. __हवे परम स्वभावनुं स्वरूप कहे छे. सर्व जे धर्मास्तिकायादिक पदार्थ तेना विशेष गुण जे धर्मास्तिकायनो चलन | सहकारीपणो तथा अधर्मास्तिकायनो स्थितिसहाय आकाशास्तिकायनो अवगाहक तथा पुद्गलद्रव्यनो पूरणगलन, जीव | द्रव्यनो चेतनालक्षण, ए सर्व द्रव्यना विशेषगुण कह्या. एम लक्षणरूप तथा द्रव्यांतरथी भिन्न पाडवार्नु मूल कारण | ते परम प्रकृष्ट गुण कहिये. ए प्रधान गुणने अनुयायी बीजा जे साधारण गुण ते गुण पंचास्तिकायमां पामियें. ते ॥१२२॥ ना नाम अविनाशीपणो, अखंडपणो, नित्यत्वादिक धर्म ए पंचास्तिकायने सरिखा छे ते माटे साधारण गुण तथा पंचा-13 पणो, अखंडप्रधान गुणने अनुयायी एम लक्षणरूप तथा द्रव्यमा पुगलद्रव्यनो पूरणा
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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