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________________ परममार्दव, परम आर्जव, छतो छ. एम जीवनोबा लखिये छये, विभागे एकएक पर्याय अविभाव्य द व्ययनी परिणमननो भिन्न स्वभाव तथा अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत चारित्र, अनंत दान, अनंत लाभ, अनंत भोग, | अनंत उपभोग, अनंत वीर्य, अनंत अव्याबाध, अरूपी, अशरीरी, परमक्षमा, परममार्दव, परम आर्जव, स्वरूपभोगी प्रमुख स्वस्वभाव ए अनंतज्ञेय ज्ञायकपणे जीवद्रव्य छतो छे. एम जीवनो ज्ञानगुण सधर्म सकलज्ञेयज्ञायकपणो स्वशक्तिधर्मे अनंत अविभागें एकएक पर्याय अविभागमां सर्व अभिलाप्य अनभिलाप्य स्वभावनो जाणगपणो छे. इहां विस्तारें। लखिये छैयें, तिहां मतिज्ञानना पर्याय जूदा छे. श्रुतज्ञानना अविभाग जूदा छे. अवधिज्ञानना अविभाग जूदा छे. मनःपर्यायज्ञानना अविभाग जूदा छे. केवलज्ञानना पर्याय जूदा छे. श्रीविशेषावश्यकें गणधरवादने छेडे कह्यो छे. जो आवरवा योग्य वस्तु भिन्न छे तो आवरण जूदा छे. तिहां क्षयोपशमने भेदें जाणे छे ते परोक्ष अथवा देशथी जाणे छे, सर्वथा आवरण गयेथके प्रत्यक्ष जाणे पण केवलज्ञान सर्वभावनो संपूर्ण प्रत्यक्षज्ञायक ते संपूर्ण प्रगट्यो तेवारें बीजा ज्ञाननी प्रवृत्ति छ पण भिन्न पडति नथी, माटे ते केवलज्ञाननो जाणपणोज कहेवाय छे, तथा कोइक ज्ञानगुणना अविभाग सर्व एक जातिना कहे छे, ते अविभागमध्ये वर्णादिक जाणवानी शक्ति अनेक प्रकारनी छे, तेमां जे आवरण एटले जे शक्ति प्रगटे ते शक्तिनुं मतिज्ञानादि भिन्न नाम छे, अने सर्व आवरण गयाथी एक केवलज्ञान कथु छे. छद्मस्थ ज्ञाननो, |भास छे. ए पण व्याख्यान छे. एवो ज्ञानगुण पोताना स्वपर्याय ज्ञायक परिच्छेदक वेतृत्त्वादिकें अस्ति छे. एम सर्व गुणमा स्वधर्मनी अस्तिता कहेवी. तेमज जे अविभागरूप पर्याय छे जेना समूहनी एक प्रवृत्तिने गुण कहियें छैयें तेपण स्वकार्य कारणधर्मे अस्ति छे. एम छ द्रव्यतुं स्वरूप स्वस्वरूपें अस्ति छे अने अन्य छे भांगा पण छे एवो सापेक्षता माटे स्यात्पद देइने
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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