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नयचक्र
सार मूळ
॥ १०३ ॥
दर्शनोपयोग ते व्यक्त पडतो नथी ते माटे प्रमाण मध्ये गवेष्यो नथी. ते प्रमाणना मूल वे भेद छे एक प्रत्यक्ष अने बीजो परोक्ष स्पष्टं प्रत्यक्षं परोक्षमन्यत् इति स्याद्वादरलाकर वाक्यात्.
५ उत्पाद के० उपजवो व्यय के० विणसवो ध्रुव के० नित्यपणो वस्तुना एक गुणमां एक समये ए त्रणे परिणमनें सदा परिणमे छे एवो जे परिणाम ते सत्पणो कहियें अने ते सत्पणानो भाव ते सत्वपणो कहियें.
६ तथा छठ्ठो १ अनंतभाग हानि, २ असंख्यात भाग हानि, ३ संख्यात भाग हानि, ४ संख्यात गुण हानि, ५ असंख्यात गुण हानि, ६ अनंत गुण हानि, ए छ प्रकारनी हानि, तथा १ अनंत भाग वृद्धि, २ असंख्यात भाग वृद्धि, ३ संख्यात भाग वृद्धि, ४ संख्यात गुण वृद्धि, ५ असंख्यात गुण वृद्धि, ६ अनंत गुण वृद्धि. ए छ वृद्धि. एम छ प्रका रनी हानि तथा छ प्रकारनी वृद्धि ते अगुरुलघु पर्यायनी सर्व द्रव्यने सर्व प्रदेशे परिणमे छे ते कोइक प्रदेशें कोइ समये | अनंतभाग हानिपणे परिणमे छे अने कोइक समये कोइक प्रदेशें अनंतभाग वृद्धिपणे परिणमे छे. एवं बार प्रकारें परिणमे छे ते अगुरुलघु पर्यायनी परिणमन शक्ति ते अगुरुलघुत्वं. अगुरुलघुनो भाव जाणवो. तत्त्वार्थ टीकाने विषे पांचमा अध्यायें अलोकाकाशने अधिकारें कह्यो छे. एम ए छ स्वभाव सर्व द्रव्यने विषे परिणमे छे. ए छए द्रव्यनो मूल स्वभाव छे. द्रव्यनो भिन्नपणो प्रदेशनो भिन्नपणो ते अगुरुलघुने भेदपणे थाय छे ते माटे ए छ मूल सामान्य स्वभाव छे. ए द्रव्यास्तिक धर्म छे अने एनुं परिणमन ते पर्यायास्तिक धर्म छे. केटलाक वादी एम कहे छे जे पर्यायनो पिंड ते द्रव्य
बालाव
बोधसहित
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