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________________ नयचक्रसार मूळ बालावबोधसहित ॥ ९९॥ णवः अनन्ताः व्यणुका अप्यनन्ताः त्र्यणुका अप्यनन्ताः एवं संख्याताणुका स्कंधा अप्यनन्ताः असंख्याताणुकस्कंधा अप्यनन्ताः एकैकस्मिन् आकाशप्रदेशे एवं सर्वलोकेऽपि ज्ञेयं एवं चत्वा रोऽस्तिकायाः अचेतनाः। | अर्थ हवे पुद्गल द्रव्यर्नु स्वरूप लखियें छैये. जे पूरण के० पूराय वर्णादिगुणे वधे, गली जाय, खरि जाय, वर्णादि गुण घटि जाय एवो जेमा स्वभाव छे ते पुद्गलास्तिकाय कहिये ते मूल द्रव्य परमाणुरूप छे ते परमाणुनुं लक्षण कहे छे. यणुकादिक जेटला स्कंध छे ते सर्वनुं अंत्यं के० मूल कारण परमाणु छे एटले सर्व स्कंधर्नु परमाणु कारण छे पण परमाणुनुं कारण कोइ नथी, कोइनुं नीपजाव्यो थयो नथी अने कोइने मिलवे पण थयो नथी. सूक्ष्म छे. एक आकाशप्रदेशनी अवगाहना तुल्य एक परमाणु छे तो पण ते एक आकाश प्रदेशमा अनंत परमाणु समाय छे पण परमाणु मध्ये बीजुं द्रव्य कोइ समाय नही माटे परमाणु द्रव्य सूक्ष्म छे अने नित्य छे जेटलुं परमाणु द्रव्य छे ते खंधादिक अनेकपणे परिणमे पण परमाणु द्रव्य कोइ विणसी जाय नही एवं परमाणु द्रव्य छे. ते एक परमाणुमां एक रस होय, एक वर्ण होय, एक गंध होय अने लुखो, चिकणो, टाढो, उन्हो, ए चार स्पर्श माहेला गमे ते वे फरस होय एवं एक परमाणु द्रव्य छे. इहां कोइ पुछे जे ते परमाणु देखातो नथी तो केवी रीते मनाय तेने उत्तर जे घटपट शरीरादिक कार्य देखाय छे, ग्रहवाय छे, ते रूपी छे तो एहना संबंधन कारण परमाणु सूक्ष्म छे माटे इंद्रियज्ञाने ग्रहेवातो नथी, परंतु रूपी छे - ण परमाणु द्रव्य कोई मो , टाढो, उन्हो, चामनाय तेने उत्तर जे
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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