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________________ रणम् आगमसार ॥९०॥ YEOCASASSAIGRISHOISISSOS ताछे विनय तथा वेयावच्च ते तपना भेद छे तप ते मोक्ष मार्ग मध्ये श्रीउत्तराध्ययने २८ मे अध्ययने कह्यो ते तुमे हिंसामें केम कहोछो तथा विवहार सूत्रे सिद्ध वेयावच्चेणं महानिजरा महापजवसाणं भवति ते माटे सिद्ध वैयावच्च ते पूजा छे तथा कोइ पूछे जेश्रावके प्रतिमा किहां पुजी छे तेहने कहेवो जे श्रीभगवती सूत्रे तुंगीयानगरीने श्रावके पूजा करी छे शंख पुष्कली ये पूजा करी छे तथा समयांग सूत्रे द्वादशांगीनी हुंडीने अधिकारे उपासक दशानी हुंडीमध्ये दश श्रावकनां चैत्य एहवो पाठ छे चैत्य तो साधु थाय नही ज्ञान थाय नहीं ते सर्वना पाठ जुदा छे तथा नंदी सूत्रे पिण पाठ छे तथा नंदी मध्ये जे आगम कह्या ते सर्व माने तेज समकिति जाणवो श्रीअनुयोगद्वार सूत्रे निर्युतिनी हा कही छे ते नियुक्तिमध्ये पूजाना अनेक अधिकार छे तथा तंदुलवेयालीयपयन्नानी टीकामध्ये समवसरणना फूल सचित्त ते ऊपर साधु साध्वी चाले प्रवचनसारोद्धारनी टीकाये पण ए संमत छे तथा कोइ कहस्ये जे फूलने प्रोइ परोववा नहीं तेहने कहीये जे हीर प्रश्नमध्ये पाठ छे तथा वन्नगंधोवमेंहेंचेति श्लोक व्याख्यायते श्राद्धदिन कृत्ये प्रोत पूजाक्षराणी वर्त्तते तथा आद्य पक्षेतु श्रीजिनवल्लभ सूरि कृत पूजा कुलकेऽपि प्रोत पुष्पाक्षराणि संति तथा हरिभद्र सूरि कृत पूजा पंचासके जहरेंहई तह कीरइ ए गाथाना आसयथी पिण प्रोया फूलनी हा जणाय छे तथा उमास्वाति वाचक कृत पूजा पटलमां पिण एमज जणाय छे. ॥९ ॥
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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