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समवाय कारण मल्या मोक्षरूप कार्य सिद्ध करवं ते पंचसमवायना नाम कहे छे १ काल २ स्वभाव ३ नियति ४ पूर्वकृत ५ पुरुषाकार ए पांच समवाय माने ते समकिति छे एमां एक समवाय उत्थापे तेहने मिथ्यात्वी कहियें एम सम्मति | सूत्रमा कह्यो छे.
कालो सहावनियइ, पुवकयं पुरिषकारणे पंच । समवाए समत्तं, एगं ते होय मिच्छत्तं ॥१॥ | अर्थ-काल लब्धिविना मोक्षरूप कार्य सिद्ध थाय नही एटले काल सर्वन कारण छे जे कार्य थवानो होय ते कार्य ते कालें थाय ए काल समवाय अंगीकार करी कह्यो इहां कोई पूछे जे अभव्य जीव मोक्ष केम जता नथी तेने उत्तर
जे अभव्यने कालमले पण अभव्यमां स्वभाव नथी तेथी मोक्ष जाय नही केमके काल स्वभाव एबे कारण जोइये टू तेवारें फरि पूछयु जे भव्यजीवमां तो मोक्षे जवानो स्वभाव छे तो सर्व भव्य केम मोक्ष जता नथी तेने उत्तर जे नियति | केहतां निश्चय समकित गुण जागे तेवारें मोक्ष पामे एटले काल स्वभाव नियति ए त्रण कारण मान्या तेवारें फरि पूछ्यु जे समकित आदि कारण तो श्रेणीक राजाने हता तो मोक्ष केम न थयो तेने उत्तर जे पूर्वकृत कर्म घणा हता अथवा पुरुषाकार जे उद्यम कस्यो नही फरी पूछयुं जे शालीभद्र प्रमुखें तो उद्यम घणो कीधो तेनुं ऊत्तर जे तेमना पूर्वकृत शुभकर्म खप्या नहता माटे पांच समवाय मिल्या कार्यनी सिद्धि थाय तेवारें फरि पूछ्युं जे मरुदेवामाताने तो चार कारण मिल्या पण पांचमो पुरुषाकार उद्यम कांड कीधो नही तेने उत्तर जे क्षपक श्रेणी चढवानो शुक्ल ध्यान रूप उद्यम कीधो छे माटे पांच समवाय मील्या मोक्षरूप कार्य सिद्ध थाय.