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आगम
सार
॥ ८२ ॥
| सात कर्मनी स्थितिना रस पातला करे अनंतो संसार खपावीने पातलो करे तथा श्रुत ज्ञाननी आराधनाथी अज्ञान मिटे एवा फल कह्या छे.
माटे वांचवा तथा भगवानो घणो उद्यम करवो केमके आज पांचमा आरामां कोइ केवली नथी तथा मनपर्यवज्ञानी अने अवधिज्ञानी पण नथी एक मात्र श्रुतज्ञान तेहिज आगमनो आराधक छे. यतः -
कत्थ अम्हारिसापाणी, दुसमादोस दूसिया । हायणा हाकहं हुंता, नहुं तो जड़ जिणागमो ॥ १ ॥
अर्थ - हे भगवंत ! अम सरिखा प्राणीनीशी गतिथात जे अमें आ दुसम पंचमकालमां अवतार लीधो. हा - इति खेदे, अमे अनाथ धुं जो जिनराजना कहेलां आगम न होत तो आज सुं थात एटले आज आगमनोज आधार छे माटे आगम अने आगमधर जे बहुश्रुत तेनो घणो विनय करवो आगममां विनयनुं फल ते सांभलवुं अने सांभलवानुं फल ज्ञान छे ज्ञाननुं फल मोक्ष छे एम आगम सांभली लेवा योग्य लेजो अयोग्य छांडजो सद्दहणा शुद्ध राखजो सद्दहणा ते मोक्षनुं मूल छे ए इन्द्रिय सुख तो आ जीवें अनंतीवार पाम्या छे एहवी जाति-जन्म-योनी कोइ रही नथी जे आपणा जीवे नही करी होय ए जीवने संसारमा भमतां अनंता पुद्गल परावर्तन थया पण धर्मनी जोगवायी मली नही तो हवे मनुष्यभव श्रावककुल निरोगशरीर पंचेंद्रि प्रगट बुद्धि निर्मल एटला संयोग मल्या वली श्रीवीतरागनी वाणीना केहेनारा शुद्ध गुरुनी जोगवाइ पामीने अहो भव्यलोको ! तुमे धर्मने विषे विशेष उद्यम करजो फिरिथी एवी जोगवाइ मिलवी दुर्लभ छे माटे प्रमाद करशो नही ए शरीर धन कुटुंब आयुष्य सर्व चंचल छे क्षण क्षण छीजे छे माटे पांच
प्रकरणम्
॥ ८२ ॥