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________________ CARRIEDOSMADAUSAMAUSA चारित्र जाणवू ए व्यवहार चारित्र सुखनुं कारण छे एवी करणीरूप श्रावकना बारव्रत अने यतिनां पांच महाव्रत ते अभव्यने पण आवे तेथी देवतानी गति पामे पण सकाम निर्जराचं कारण न थाय इहां कोई पूछेके मोक्षन कारण नथी तो एटलं कष्ट शावास्ते करिये तेने उत्तर जे त्याग बुद्धी निश्च ज्ञानसहित चारित्र ते मोक्षन कारण छे माटे निश्चं चारित्र सहित व्यवहार चारित्र पालवू ते निश्चे चारित्र कहे छे शरीर इन्द्रिय विषय कषाय योग ए सर्व पर वस्तु जाणी छांडवा तथा आहार ते पुद्गल वस्तु जाणी छांडवो आत्मा अणाहारी छे ते माटे मुझने आहार करवो घटे नही आहार ते पुद्गल छे आत्मा अपुद्गली छे ते माटे त्याग करवो तद्रूप जे तप ते तप निश्चे चारित्रमा जाणवू चारित्र कहेतां चंचलता| | रहित थिरताना परिणाम अने आत्मस्वरूपने विषे एकत्वपणे रमण तन्मयता स्वरूप विश्रांति तत्वानुभव ते चारित्र कहिये ते चारित्रना बे भेद छे एक देशविरति बीजो सर्व विरति तिहां देश विरति केहतां श्रावकना बारव्रत निश्चें तथा व्यवहारथी कहे छे. १प्राणातिपात विरमण व्रत ते परजीवने आपणा जीवसरीखो जाणी सर्व जीवनी रक्षा करे ते व्यवहार दया थयी माटे व्यवहार प्राणातिपातविरमण व्रत जाणवू अने जे आपणो जीव कर्मवशपड्यो दुःखी थाय छे ते आपणा जीवने कर्मबंधनथी मुकाव, अने आत्मगुण रक्षा करी गुणवृद्धि करवी ते स्वदया बंधहेतु परिणति निवारी स्वरूपगुणने | प्रगटपणे करवा जे गुण प्रगट थयो ते राखवो एटले ज्ञाने करी मिथ्यात्व टाली आपणा जीवने निर्मल करे ते निश्चैथी प्राणातिपात विरमण व्रत कहिये. HOSSAISTES BOSSSSS
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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