________________
आगमसार
॥७०॥
संख्यात गुणहानि ५ असंख्यात गुणहानि ६ अनंत गुणहानि ए रीते छ प्रकारनी वृद्धि तथा छ प्रकारनी हानि ते सर्व प्रकरणम् द्रव्यमां सदा समय समय थयी रही छे वृद्धि ते उपजवो अने हानि ते व्यय कहियें ए अगुरुलघु पणो कह्यो नहीं गुरु तथा नही लघु ते अगुरुलघु स्वभाव कहियें ए सर्व द्रव्य मध्ये छे ते श्रीभगवतीसूत्रे “सबदबा सबगुणा सबपएसा सब|पज्जवा सबद्धा अगुरुलहुआए" अगुरुलघु स्वभावने आवरण नथी तथा आत्मा मध्ये जे अगुरुलघु गुण ते आत्माना सर्व प्रदेशे क्षायक भाव थये सर्व गुण सामान्य पणे परिणमे पण अधिका ओछा परिणमे नही ते अगुरुलघुगुणनुं प्रवतन जाणवू ते अगुरुलघु गुणने गोत्रकर्म रोके छे ए अगुरुलघु स्वभाव ते सर्व द्रव्यमां छे. | हवे गुणनी भावना कहे छे तिहां जेटला छए द्रव्यमां सरीखा गुण छे ते सामान्य गुण कहियें अने जे गुण एक द्रव्यमा छे अने बीजा द्रव्यमां नथी ते विशेष गुण कहिये जे गुण कोइक द्रव्यमा छे अने कोइक द्रव्यमां नथी ते साधारण असाधारण गुण कहियें एम ए छ द्रव्यमां अनंत गुण अनन्त पर्याय अनन्त स्वभाव सदा शाश्वता छे जेम श्रीकेवली भगवंतें परूप्या ते सर्व जेरीतें छे तेरीतें सद्दहणा पूर्वक यथार्थ उपयोगथी श्रुतज्ञानादिकथी यथार्थ पणे जाणवा सद्दहवा ए निश्चें ज्ञान ते मोक्षy कारण छे जे जीव ज्ञान पाम्यो ते जीव विरति करे छे ते चारित्र कहिये ज्ञान- फल विरतिपणो छे ते मोक्षनुं तत्काल कारण छे. __ हवे निश्चेंचारित्र अने व्यवहार चारित्रनो विचार कहे छे. तेमा प्रथम व्यवहार चारित्र ते जे प्राणातिपात विरमण 81 प्रमुख पंचमहाव्रतरूप ते सर्वविरति कहिये अने स्थूल प्राणातिपात विरमणव्रतादिक श्रावकना बारव्रत ते देशविरति