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________________ आगमसार ॥ ५७ ॥ ते अनादि अनंत संबंधी छे जे लोकाकाशना एकेक प्रदेशमां धर्मद्रव्य तथा अधर्मद्रव्यनो एकेक प्रदेश रह्यो छे तेपण किवारे विछडसे नही माटे अनादि अनंत संबंधी छे आकाश खेत्रलोकसर्व अने जीवद्रव्यनो अनादि अनंत संबंध छे, अने संसारी जीव कर्म सहित तथा लोकना प्रदेशनो सादि सांत संबन्ध छे. लोकांत सिद्धखेत्रना सिद्धजीवोनो आकाश प्रदेश साथै सादि अनंत संबन्ध छे, लोकाकाश अने पुद्गल द्रव्यनो अनादि अनंत संबन्ध छे. आकाश प्रदेशनी साधें पुद्गल परमाणुनो सादि सांत संबन्ध छे एम आकाश द्रव्यनी परे धर्मास्तिकाय तथा अधर्मास्तिकायनो पण सर्व संबन्ध जाणवो जीव अने पुद्गलना संबंधमां अभव्य जीवने पुद्गलनो अनादि अनंत संबंध छे केमके अभव्य जीवना कर्म किवारें खपशे नही माटे अने भव्य जीवने कर्मनुं लागवुं अनादि कालनुं छे पण ते किवारेक छूटशे माटे भव्य जीवने पुद्गल संबंध अनादि सांत छे तथा निश्वें नयकरी छ द्रव्य स्वभाव परिणाम परिणम्या छे ते परिणामी पणो सदा शाश्वतो छे ते माटे अनादि अनंत छे अने जीव तथा पुद्गल बेहु द्रव्य मलि संबंध भाव पामे छे ते पर परिणामी पणो छे ते परपरिणामिपणो अभव्य जीवने अनादि अनंत छे अने भव्य जीवने अनादि सांत छे अने पुद्गलनो परिणामी पण ते सत्तायें अनादि अनंत छे अने पुद्गलनो मिलवो विछडवो ते सादि सांत छे एटले जीव द्रव्य पुद्गल साथै मिल्यो सक्रिय छे अने पुद्गल कर्मथी रहित थाय तेवारें जीव द्रव्य अक्रिय छे अने पुद्गल द्रव्य सदा सक्रिय छे. हवे एक, अनेक पक्षथी निश्चे ज्ञान कहेवाने नय कहे छे, सर्व द्रव्यमां अनेकस्वभाव छे, ते एक वचनथी कह्या जाय नही माटे मांहो मांहें नय करी संक्षेप पणे कहे छे, तिहां मूल नयना वे भेद छे एक द्रव्यार्थिक बीजो पर्याया प्रकरणम् ॥ ५७ ॥
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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