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वि सव्वसामग्गि-संगओ नीहरेइ नयराओ । मंदरगिरिव जलहि, गाइ परचकदलनिवहं ॥ ११३ ॥ अह नंदसिनपहया, सेणा चाणकचंदगुत्ताणं । अब्भावलिन्च पवणेण, पिल्लिया विडिया झत्ति ॥ ११४॥ अह निसिन भग्गं, दणं चंद. गुत्तचाणका । जचतुरंगारूढा, नहा एगं दिसि घिन ॥ ११५॥ जाव य नियंति पच्छा, ता ते पिच्छ ति पिट्टी लग्गे। धावते असवारे, ता मुत्तु तुरंगमे नहा ॥ ११६ ।। चडिया सरवरपालिं, ति जाब पिच्छति पिट्रो ताव । एगं सहद आसन्न-मागयं तुरयमारूढं ॥ ११७ अह नंदरायरयगो, सरतीरे चीरधोवणासत्तो । भणिओ चाणकेणं, रे!रे! पळाएसु ॥ ११८ ॥ भग्गं पाडलिपुत्तं, घिप्पंति य नंद पस्किया हत्थे । तं आयनिय रयगो, नट्ठो वेगेण हरिणु च ॥ १९॥ गोवेवि चंदगुत्तं, पउमिणिसंडे सयंत चाणको । रयगहाणठिो सो, वत्थाई धोविउ लग्गो ॥१२० ॥ अह पत्तो अस. वारो, पुच्छइ भो रयग! कत्थवि कहेसु। चाणकचंदगुत्ता, स भणइ नत्थित्य चाणको ॥ १२१ ।। चिठेइ चंदगुतो, इमस्स म_मि पउमसंडस्स । अह आह आसवारो, तुरगं साहेसु भो रयग ! ॥ १२२ ॥ अह तं जंपइ रयगो, बग्धाओ-2 इव हयाउ बीहेमि । तो रुखमि तुरंग, बंधेई नियउवायं च ।। १२३ ।। मुत्तूण तुरगभिउडे, खग्गं पिट्टमि उत्तरीयं च । ६ जलपविसणथमेसो, उत्तारइ मुज्झए जाव ॥१२४॥ ता तस्सेव य खग्गं, भिउडाओ गिन्हिऊण चाणको । प्रति असबारसीस, छिदेई केलिथंभ व ॥ १२५ ॥ सदेवि चंदगुत्तं, तुरंगमेतमि दोवि चडिऊण | करगहिय जीविया इव, चडिया गेण एगदिसि ॥ १२६ । अह परिसंतो सो वि हु, तुरंगमो तेहिं उझिओ मग्गे । अह वच्चंतो पुच्छा, चाणको चंदगुत्तमिमं 18 ॥ १२७ ॥ कि चित्यिं तया रे, जवल दंसिओ मए तस्स । सो भणइ मज्झ रज्ज एवं अज्जेण दिदं नि ॥१२८ ॥ नद
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