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अयं पुणो अधनो, कयसणगासप्पमाणमित्तंपि । न य उचलभामि कत्थवि, अइबहुलल्लिं कुणंतो वि॥१८॥ता पर चिय मुणिणो, आहाराओ जहिच्छलद्धाओ । मग्गामि किंचि मत्तं, करुणाए हिंति जइ कहवि ॥ १९॥ इय चितिऊण तेणं, मुणिणो मग्गंमि मग्गिया भत्तं । ते बिति इमस्स पहू, गुरुणो ता तिच्चिय मुणंति ॥ २०॥ इय मुच्चा पिढगो, स आगओ जाव मूरिणो दिहा। ता मग्गिया य भत्तं, मुणीहिं से पत्थणा कहिया ॥२१ ॥ तत्तो मुयनाणाओ, गुरुहि नाऊण पवयणाधारो । एस भविस्सइ तम्हा, जुत्तो यस्स उबयारो ॥ २२ ॥ अह भणिो सो दमगो, भय ! जा पबयासि ता देमो । तुज्झ जहिच्छाहारं, तेणवि तहत्ति पडिवनं ॥ २३ ॥ तो दिक्खियभन्नतं, सामइयं तस्स मूरिणा दि। भुजाविओ जहिच्छं, अइसुसिणिद्धं च आहारं ॥ २४ ॥ तेण य विमूच्या से, जाया सो पालियो य साह। चिंतेइ अहं धनो, जस्स मम एरिसा सारा ॥ २५॥ कत्थ अहं भिक्षयरो!, कत्थ इमे साहुणो बहुगुणा । परियरति तहवि अहह! नमो सदयधम्मस्स ॥ २६ ॥ एवं सो चिंतता, खीणत्तो य आफम्मस्स । उप्पन उग्गवेयण-बसेण रयणीइ मरिऊण ॥ २७ ॥ अव्वत्तेणं सामा-इएण मज्झत्थभावणाए य । अंधयकुणालकुमरस्स, नंदणो सो समुप्पनो ॥ २८ ॥ को सो कुणालकुमरो?, कह वा नयणेहि अंधश्रो जाओ ? । एयं च पत्थुयत्य, साहिज्जतं निसामेह ॥ २९ ॥ अस्थि इह जंबुतीवे, भारहवासंमि गुल्लए विसए । चणयग्गामो गामो, गोरसम्मो सुरुवं व ॥३०॥ तत्थ य चउवेयविऊ, सिक्खावागरणछंद कप्पड़ो । जोइसनिरुत्तनिऊणो, पुराणवक्खाणविहिकुमलो ॥ ३१ ॥ मीमंसनावित्थर-धम्मत्यविशारपारगो अहियं । चणयाभिहो दियवरो, सावित्ती नाम से भज्जा ।। ३२ ॥ सोय जिणधम्मनिरओ, विरसम्मत्तो मुसाहभत्तो य । तो तस्स
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॥३८॥