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मणमि साहु इमो । दव्वजणे उवाओ, निरवाओ जुज्जइ ममावि ॥ ११०३ ॥ एईए सविसेस, अहं पि आराहयामि जक्खमिमं । जह बुडि समभहिया, संपज्जइ संपइ मज्झ ॥ ११०४ । अह अत्थसिद्धिहेर्ड, सा सिद्धी बुद्धिदंसियदिसाए। उज्जुत्ता तं जक्ख, अणुदिणमाराहए एवं ॥ ११०५॥ खडियाधाऊहि सय, दुवारसोवाणभित्तिभूमीओ । मंडइ जक्खस्स गिहे, भत्तीइ विचित्तभत्तीहिं ॥ ११०६ ॥ फुडसत्थियरेहाहिं, भूसइजक्खंगणं अणुदिणं पि । किच्चे भत्तिपयारे, सा गणयंती व तत्तुल्ले ॥ ११०७॥ आणिय पाणीयं सा, जक्खं व्हावइ सयं सुईभूया । पूयइ य तिसंझ पि हु, दूराणीएहि कुसुमेहिं ॥११०८॥ उपवासएगभत्ता-इतप्परा जखमंदिरे तम्मि । निवसइ रत्तिदिणं पि हु, जक्खस्सभिोगियसुरु व्व ॥ ११०९ ॥ एवं उज्जु. ताए, जक्खो आराहिओ भणइ तं पि । तुट्ठोहं तुह भद्दे ?, पत्थेसु जहिच्छियं अत्थं ॥ १११० ॥ अह विनवेइ सिडी, जक्खं अक्खीणसंपर्य देव ? । जे बुद्धीए दिन्न, तं दुगुणं मह तुम देसु ॥ ११ ॥ दिन्नं ति भणिय भोलग-जक्खो जाओ स तक्खणमलक्खो । बुद्धीसमहियरिद्धी, सिद्धी वि कमेण संजाया ॥ १२ ॥ सिद्धीइ दुगुणरिद्धी, दटुं बुद्धी पुणोवि तं जक्खं । तोसित्ता तीसे वि हु, दुगुणधणं पत्थिउं लेइ ॥ १३ ॥ तं जाणिऊण सिध्धी, जक्ख सेविय करैइ पच्चक्खं । वरदाणपरे तम्मि य, दुट्ठा चिंतइ नियमणम्मि ॥१४॥ जं किंपि पत्थइस्से, दव्वं जक्खाउ त इमा बुध्धी । आराहिऊण जक्खं, दुगुणं गिहिस्सइ पुणो वि ॥१५॥ ता तं पत्थेमि अहं, जं दुगुणं मग्गियं हवइ तीसे । दुत्थाणत्याण कए, इय चिंतिय सा भणइ दुक्खं ॥१६॥ जइ तुट्ठो ता सामिय ?, एग नयणं करेसु मे काणं । विहियं ति जक्खभणिए, सा जाया तक्खणं काणा ॥ १७ ॥ जक्खेणकिंपि अहिय, सिद्धीइ पसाइयं ति लोभेण । तं दुगुणं इच्छन्ती, बुद्धी सेवा पुणो जक्खं ॥ १८ ॥ मग्गइ यतम्मि तुढे, सा