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________________ विणो, कीलता जूयगार व्व ॥ १०७१ ॥ सो चिर जूहाहिवई, भग्गट्ठी तस्स मुट्टियाएहिं । मद मंदं दुका, तुरियं तुरियं च ओसरइ ॥ १०७२ ॥ तं तह अवसप्पंत, सो निहणइ लिठुणा कविजुवाणो । अह तेण तस्स सीसं, फुट्ट पकं व दाडिमगं । १०७३॥ सिरघायवेयणाए, अक्कतो जूह नायगोसो वि । नासिय दूरं पत्तो, दढचावाकड्ढियसरु व्व २०७४॥ दुस्सहपहारपीडाविहुरो तण्हाइओ परिभमंतो । कत्थ विझरंत सेले, सिलाजउ सो निरिक्खेइ ॥१०७५॥ अह सो जलबुद्धीए, निक्खिवइ सिलाजउ म्मि तम्मि मुहं । तं च चहुट्टिय रहियं, तत्थेव निबद्धमिव गाई । १०७३ ॥ आइढिस्सामि मुहै, इय खित्ता तेण बाहुणो तत्य । ते वि तहेव चहुट्टा, पुनखए फलइ न उ वाओ ।। १०७७ ॥ ता कुमई सो खिवइ, तत्थ पए ते वि तह(त्ति) चहुस॒ति । अह कीलियपंचंगो, पावइ सो वानरो मरणं ।। १०७८ ॥ जइ सो मुहे चहुद्दे, न खिवइ बाह पए य दुब्बुद्धी । ता मुंचिज | कहं पि हु, इमो य सेलेयसलिलाओ ॥ १०७९ ॥ एवं रसणालुद्धो, नरो सिलाजउनिभासु नारीसु । पंचिदिएहि बद्धो, मरेइ न तहा अहं मुद्धो ॥ १०८० ॥ अह नहसेणा जंपइ, पंचमभन्जा कयंजली नाह ? । थविरेव लोभमहियं. मा कुणमु अणत्य संजणयं ॥१०८१ ॥ पुवं कम्मि वि गामे, थेरीआ बुद्धिसिद्धिनामाओ । अचंतदुत्थियाओ, अन्नुन्नं सहिसमाओ य ॥१०८२॥ 18| तस्स य गामस्स बहि, सच्चाहिट्ठायगो अइपसिद्धों। भोलगनामा जक्खो, अभिवंछियसिद्धिदो अस्थि ।। १०८३ ॥ अह साम M बुद्धी थविरा, दारिद्ददुमाणवाडिया तत्थ । तं आराहइ जख, सम्मं पड़वासरं गंतुं ॥ १०८४ ॥ तब्भवणं भत्तीए, तिसंज्झ| मवि सा पमज्जए बुद्धी । ढोयइ य तस्स निच्चं, पूया पुव्वं च नेवजं ॥ १०८५ ।। तुह देमि किं ति तुट्ठो, जक्खो जंपइ तमनया थेरी । “निच्चं सेविज्जतो, कया वि तूसइ कवोओ वि" ॥१०८६॥ अह सा बुद्धी जंपइ, जइ सच्चं मज्झ देव ! तुट्ठो सि।
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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