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प्रकरणम्
धर्मविधि ॥१३७॥
| तुम सरवणमि चिट्ठिज्जा । एगागिणी भयं मा, करेसि अचिरा वलिस्सामि ॥ ९६३ ॥ आरोविऊण पिढे, तुमं तरंतो जलमि
पोउ व्व । उत्तारिस्सामि पिए ? मा लज्जसु कुणसु मह वयणं ॥९६४॥ अह तब्बयणं काउं, रहिया सा सरवणमि पविसित्ता । | वत्थाभरणे गहिउँ, तीरगो चिंतए चोरो ॥९६५॥ जीए मइ रत्ताए, सहसा मागविओ नियपई वि । खणरागिणी हलिद्दा, इव होही मज्झ वि दुहाय ॥९६६॥ इय चिंतिउंस चोरो, वत्थाभरणाइ गिहिउँ तीसे । तं पच्छा पिक्खतो, झत्ति पणट्ठो कुरंगु व्व ।। ९६७ ॥ करिणि व्व उज्झियकरा, सा जहजाय व्व विवसणा भणइ । तं गच्छंत पिक्खिय, कह में मुत्तूण जासि तुमं ॥ ९६८ ॥ चोरो भणइ विवसणं, तुममेगं सरवणम्मि संलीणं । रक्खसिमिव दट्टणं, बीहेमि तए कयं मज्झ ॥ ९६९ ॥ इय
अविखउँ खगो इव, उड्डीणो सो अदंसणं पत्तो । सा दिन्नगल्लहत्था, रहिया तत्थेव उबवि(व सिउं ॥६७०॥ अह सो वि मिठ& जीवो, देवत्तं पाविऊण अवहीए । पुचभवं सुमरंतो, तं पिक्खइ तह ठियं दीणं ॥ ९७१ ॥ तो करुणाइ स देवो, तीसे पडि
बोहणत्थमागंतुं । मुहगहियमंसपिंडं, सियालमेगं विउव्वेइ ॥ ९७२ ॥ ततो तीइ नईए, तीरे नीराउ निग्गय मीणं । भुत्तुं पहाविओ सो, मुहाउ मुत्तण तं मंसं ॥ ९७३ ।। तो तक्खणेण मौणो, झत्ति पविट्ठो नइप्पवाहम्मि । गहिया य तबिउब्वियसउणीए मंसपेसी वि ॥ ९७४ ॥ सा असई नइतीरे, निरिक्खिरं तं तहा सरवणत्था । जंपइ दुहदीणा वि हु, सकोउगा जंबुयं
एवं ।। ९७५ ॥ परिचइय मंसपेसि, हे बुद्धिविहीण ! मीणमिच्छसि । चुक्को दुहं पि तुमं, कि जंबुय ! पिक्खसि इयाणि ॥ 1 ९७६ ॥ तो जंबुएण भणिय, निययपई चइय परनरं रमसि । दुण्डं पि तुमं चुक्का, किं चिंतसि नगिगए ? अहुणा ॥ ९७७ ॥ शतं सोऊण भयाउल-हिययाए तीइ मिठदेवो सो। निययमहिटियरूवं, दंसंतो इय पर्यपेइ ॥ ९७८ ॥ जइ वितए पावं चिय,
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