SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ARRESS ॥ ५९५ ॥ अह वढियाइ ताई, दुन्नि वि भवणेसु ताण इब्माण । रखिजंताइ बहुँ, सामिसमप्पियनिहाणं व ॥ ५९६ ॥ जायाइ ताइ दुन्नि वि, कालेण कलाविऊणि बालाणि । पत्ताइ तहा अहिणव-जुव्वणमइरूवरमणीयं ॥ ५१७ ॥ अणुरूवाणि इमाणि य, इय इब्भसुएहि तेहिं हरिसेण । तेसि चिय अन्नुन्नं, पाणिग्गहणोसवो विहिओ ॥ ५९८ ॥ तेसि बियड्ढसिक्खा गुरुणा नवजुवणेण लित्ताणं । जाओ रंगारूढो, पुंनारीवाहणो मयणो ॥ ५९९ ॥ अन्नदिणे जूरणं, पारदं कीलियं वरवहू#हिं । तेहि पर परउल्लसिय-पेमजललहरिमग्गेहि ॥ ६०० ॥ ता कम्मिवि पत्थावे, कुबेरदत्तस्स मुद्दिया करो । गिन्हिय स हीइ खित्ता, कुबेरदत्ताकरूच्छंगे ॥ ६०१॥ तं मुद्दियकरत्थं, दम्म व परिक्खिउं परिफुसंती। पिक्खइ कुबेरदत्ता, पुणो पुणो निउणनयणेहिं ॥ ६०२ ॥ तो चिंतइ नियहियए, एसा नूणं अउव्वसंठाणा । तह अवरमुद्दियाद-सणेण घडिया विदेसम्मि | ॥६०३॥ तत्तो य मुद्दियं तं, निययं य पुणो पुणो निरिक्खती। चिंताइ फुरियकाया, एयं हिययंमि निच्छ यइ ॥६०४॥ एया। मुद्दियाओ, समतुल्लायो तहेगघडियाओ । सरिसक्खरनामाओ, मन्नेमि सहोयराउ व्व ॥६५॥ता हं कुबेरदत्तो य, मुद्दियाउ व्य सरिसरूवाइ । तह समसंठाणाई, असंसयं भाउभंडाई ॥६०६॥ अन्नूणाहियसव्वं-गओ य अम्हे फुड जुयलजाई । इय परिणयणाकिच्चं, ही कारवियाइ दिव्वेण ॥६०७॥ पिउणा जणणीए वा, अम्हं दुन्हंपि कारियाउ धुवं । तुल्लाउ मुद्दियाओ, तुल्लेण अवच्चनेहेण ॥६०८॥ जं सोयराइ अम्हे, तेणं चिय न मह पइमई इत्थ । एयस्स वि घरणिमई, नेव सयं में पइ इवेइ ।।६०९॥ एवं कुबेरदत्ता, तहत्ति कयनिण्णया नियमम्मि । हत्थे कुबेरदत्तस्स, खिवइ तं मुद्दियाजुयलं ॥६१०॥ तत्तो कुबेरदत्तो वि, मुद्दियार्ण जुयस्स दंसणओ। आसाइऊण चिंतं, तहेव पत्तो परिविसायं ॥ ६१२ ॥ अह सो कुबेरदत्ताइ, मुहियं अप्पिऊण उढेइ । पुच्छइ
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy