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है ए पणमिऊण । आरुहिय रहं जंबू, नयरवारम्मि संपत्तो ॥ ४६८ ॥ तइया तप्पुरदारं, तह करितुरयाइसंकुलं जायं । जह 13
पडियस्स तिलस्स वि, न हवइ भृमीइ सह जोगो ॥ ४६९ ॥ चिंतइ य जंबुसामी, जइ पुरदारं इमं पडिक्खेतो। चिट्ठामि पविसणत्थं, तो कालाइक्कमो हवइ ॥ ४७० ॥ तम्हा पविसामि अहं, अबरदुवारेण पिल्लिऊण रहे। वरमुच्छुयस्स अन्नो,
पंथा न पुणो पडिक्खलगं ॥ ४७१ ॥ इय जाब दुवारंतर-मागच्छइ रहवरडिओ जंबू । ता सज्जोकयजंत, वप्पं तत्थ वि नि४ रक्खे ॥ ४७२ ॥ वप्पोरिजंतेमुं, पिक्खेइ सिलाउ लंबियाओ य । गयणंगणाउ निवडत-वजगोलयसरिच्छाओ॥ ४७३ ॥ चिंतइ परचक्कभया उपक्कमो एस एरिसो एत्य । ता दारेण इमेण वि, अणत्थबहुलेण किंमज्झ ॥ ४७४ ॥ गच्छतस्स य इमिणा, मग्गेण मज्झ जइ सिला उवरि । निवडइ ता नेव अहं, न रहो न य सारही अहुणा ॥ ४७५ ॥ एवं च जायमरणो, अ. विरयचित्तो लभिज्ज कुगइमहं । ता गर्नु गुरुपासे, किंचिवि विरओ भविस्सामि ॥ ४७६ ॥ इय वालिऊण पच्छा, निययर वक्तगह इव कुमारो। गुरुपयपउमसणाह, समागमओ तं पुणी ठाणं ॥ ४७७ ॥ ततो सुहम्मसामि, पणमिय इय विनवेइ पहु इत्तो । मह होउ बंभवेरं, जाजीवं तिविहति विहेण ॥ ४७८ ॥ अह गुरुणाणुन्नाओ, नियम पडिजिऊण रिसहसुभो । सुकयत्थं अप्पाणं, मन्नतो आगओ गेहे ॥ ४७९ ॥ साहइ पियराण पुरो, निसुओ धम्मो सुहम्मपहुपासे । अज मए ता तुम्मे मुयह ममं संजमं गहिउँ ॥ ४८० ॥ पियराइँ रुयंताई, भणंति गग्गयसरेण मा वच्छ । अप्पत्थावे अम्हं, आसातरुछेयणं कुणमु
॥ ४८१ ॥ चिंतेमो वयमेवं, तुममिहि वच्छ ? होसि सबहूओ। पिक्खिस्सामो य लहुं, मुहकमलं तुह अवच्चाण ॥ ४८२॥ म को संजमस्स समओ, एयारिसजुवर्णमि तुह वच्छ ? । आयारमिमस्मृचिर्य, किन मणागंपि इच्छेसु ॥ ४८३ ॥ जइवि तुह