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रिसो विणी । दिट्ठो मए मुणीणं, सो कह मइ जुज्जर तुज्झ ॥ ३७३ ॥ अह आह इब्मपुत्तो, जस्स मणो वासियं समत्तण । सो विणयवंदणाण, अरिहो इह को वि हुन दोसो ॥ ३७४ ॥ नवरं पुच्छामि तुमं, कुमार अहमागओ य पुच्छेउ । कइ भुंजसि नेव तुम, र सज्जराउरियदेहु व्व ॥ ३७५ ॥ भणइ सिवो मित्त ? न में, वयगहणत्थं मुयंति पियराई । तो भावजई होऊं,
रहिओ है इह गिहविरत्तो ॥ ३७६ ॥ उबिज्जिऊण जेणं, मुत्तुं पियराइणो मद ममत्तं । अणुजाणंति वयट्ठा, मित्त ? न भुजे& मि इत्तोई ॥ ३७७ ॥ इब्भो भणइ महासय ?, जइ एवं ता तुमं जिमसु जम्हा । धम्मो देहाहीणो, देहं च विणा न आहारं
॥ ३७८ ॥ किंच महामुणिणोवि हु, कुमार ?: गिव्हंति फासुयाहारं । देहे य निराहारे, कम्माणं निजरा दुकरा ॥ ३७९ ॥ शकुमरो वि भणइ कह मम, संपज्जइ मित्त ? नियगिहठियस्स । आहारो निरवज्जो, अभोयणं वरतरं तम्हा ॥ ३८० ॥ इन्भो |
पभणेइ गुरुं, तं मह इत्तो य तुज्झ सीसो हं। आणिस्से सव्वमहं, जं इच्छसि तुममसावा ॥ ३८१॥ अह भणइ सिवकुमारो, मित्त ? अहं जाव ठामि गेहम्मि । ता छटुस्स करिस्से, पारणमायंबिलेणाहं ॥ ३८२ ॥ अह तस्स भावजइणो, वेयावच्चं
करेइ इन्भसुओ। सामायारीनिउणो, मुणिन्च सुद्धासणाईहिं ।। ३८३ ॥ वोलीणाइ दुवालस, बरिसाइँ सिबस्स इय तवंतॐ स्स । पियरेहिं गुरुसमीवे, मोहाउ पुणो न सो मुक्को. ।। ३८४ ॥ अह मरि सिवकुमरो, उप्पन्नो वि विज्जुमालिनामसुरो।
पंचमकप्पे एसो, सुरिंदसामाणिो देवो ॥ ३८५ ॥ अज्जवि इमस्स एसा, कंती आसन्नचवणसमयस्स । आसि पुरा पुण पंचम-कप्पादिवसमरुई एसो॥ ३८६ ॥ चविउँ एयम्मि पुरे, एसो सेणिय ? दिणम्मि सत्तमए । रिसहस्स मुओ जंबू, भविइसई केवली चरमो ॥ ३८७॥ इय कहिऊणं विरए, वीरजिणे विज्जुमालिणि वयंति । चउरो वितप्पियाओ, पुच्छति पस