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________________ हिनाणं, सागरमुणिणो तवरयस्स ॥ ३४२ ॥ भवदेवस्स य जीवो, पुण्णे कालम्मि देवलोगाओ । चविऊण तत्थेव य, विजए पुरि वीयसोगाए ॥ ३४३ ॥ गुणनिहिणो महिवइणो, सिरिपउमरहस्स अग्गमहिसीए । वणमालानामाए, जाओ पुत्तो सिवकुमारो ॥ ३४४ ॥ अह तस्स बदमाणस्स , सक्खिमत्तीकए उवज्झाए । संकमियाउ कलाओ, कयसनाउ व्व अन्नुन्नं ॥ ३४५ ॥ जाओ य जुन्बणत्यो, पिउणा परिणाविओ बहू कन्ना । परियरिओ सो ताहि; लयाहिं रुक्ख ब्व सोहेइ ॥३४६॥ सकलत्तस्स य तस्स य, पासायट्टियस्स अन्नदिवसम्मि । सागरदत्तो नयरी-आसन्नवर्णमि संपत्तो ॥३४७॥ तत्य य कामसमिद्धो, सत्याहो तं मुणिं सगिहपत्तं । पडिलाभइ भत्तीए, मासक्खमणस्स पारणए ॥३४८|| तो सत्यवाहगेहे, सुपतदाणप्पभावओ तइया । वसुधाराओ बुट्ठा, किं न हवइ पत्तदाणाओ ॥ ३४९ ॥ तं अच्छरियं सोउ, कुमरो वंदेइ तं मुर्णि गंतुं । तप्पयपरमसमीवे, उवविट्ठो रायहंसुब्व ॥ ३५० ॥ पुन्वाण चोद्दसण्हं, स आगरो सागरु व्व रयणाण । आइक्खइ जिणधम्मं, सिवस्स परिवारसहियस्स ॥ ३५१ ॥ तत्तो विसेसउ च्चिय; संसारासारयं कुमारस्स । स मुणीसरो गवावइ, फलिहसिलानिम्मले हियए ॥३५२॥ पुच्छइ य मुणिं कुमरो, किं भयवं पुव्वभवभवो नेहो ? । तुह दसणेण जे मह, जायइ अ| हियाहिओ हरिसो ॥ ३५३ ।। अह ओहिणा वियाणिय, भणइ मुणी मज्झ पुध्वजम्मम्मि । आसि तुम लहुभाया, पाणाण वि वल्लहो अहियं ॥ ३५४ ॥ गहियव्वएण पुव्वं, अणइन्छतो वि तं मए तइया । गिहाविओ सि दिक्ख, परलोगकए उवाएण ॥ ३५५॥ दो वि तओ मरिऊणं, सोहम्मे सुरवरा सप्पन्ना। चविऊण तो जाया, तुम अहं चिय इह भवंमि ॥३५६ ॥ ता भद्द ? वीयराओ, अहमिहि गहियसंजमत्तेण । तं पुण रागवसाओ, अज्जवि ममुवरि कुणसि नेहं ॥ ३५७ ॥ स्वा5%OLA-%A4-
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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