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नरेहि कुमरस्स । कहियाइ पवित्तीए, जाओ उद्धाणनयणो सो ॥ १८४ ॥ नवरं पुत्तविओगे, अणुदियह तस्स रोयमाणस्स । अंधत्तं संजायं, जह रिसहजिणिंदमायाए ॥ १८५ ।। अह सो वुडतवस्सी, सबंभचारीहि अन्नतवसीहिं । करणाइतवस्संते, पाराविज्जइ फलाईहि ॥ १८६ ॥ अह अन्नदिणे बक्कल-चीरी जासु बारवरिसेसु । रयणीअद्भवबुद्धो, चिंतइ एयं ससंवेयं ॥१८७ ॥ जणणी मज्झ विवन्ना, अभग्गपत्तस्स जायमत्तस्स । वणवासिणा वि तारण, पोसिओ बालभावम्मि ॥ १८८ ।। निच्चपि कडित्थेणं, धाईकम्माइ कारयंतेणं । तवकट्ठाओ अहियं, पिउणो कर्ट मए विहियं ॥ १८९ ॥ ता जाव जुब्बणम्मी,
पच्चुवयारक्खमो अहं जाओ । ता पावो रसलुद्धो, इहागओ दिव्वजोगेण ॥१९० ॥ जम्मेणेगेण अहं, पिउणो कह तस्स अवरि४ाणो होमि ? । जेण सहिऊण कटुं, पूयरओ कुंजरीविहिओ ॥१९१॥ इय चिंतंतो गंतुं, पसन्नचंद भणेइ पहसमए । देवाहं पिउप |
यदसणमि उत्कंठिओ अहियं ॥ १९२ ॥ रन्ना भणियं बंधव, ताओ खलु मज्झ तुज्झ वि समाणो । तप्पायदंसणम्मी, ममावि तुझेव उकंठा ॥ १९३ ॥ पत्तो पसन्नचंदो, तह कुमरोदो वि परियणसमेया । पिउपयपउमपवित्ते, पत्ता आसमपए तम्मि ॥१९४॥ | उत्तरिया जाणाओ, दोऽवि तओ भणइ नरवरं कुमरो । दट्ठण आसमाममं, तिणं व मह भाइ रज्जसिरी ॥ १९५॥ एयाइ सरव- 12
राई, ताइ अहं जेसु हंस इव रमिओ । मह भायइ व्व एए य. पंसुकीलासहा हरिणा ॥ १९६ ॥ तेऽमी दुमा य जेसिं, भुत्ताइँ दाफलाई वानरेणेव । महिसीउ इमा जेसिं, माऊण व खीरमिह पियं ॥१९७॥ सामिय ! एयम्मि वणे कित्तिय सुक्खाइ तुह कहमिद | अहं । रज्जे मह एगं पिहु, पिउपयसेवासुहं कत्तो? ॥ १९८ ॥ अह तम्मि आसमपए, राया कुमरो य दो वि हु पविट्ठा । दिट्ठो
य सोमचंदो, लोयणकुवलयकयाणंदो ॥ १९९ ॥ तो जंपइ नरनाहो, पेउचरणे नियसिरेण फरिसंतो। ताय! इमो तुह पुत्तो,