________________
AAHARASHTRA
उवयारी मह न भुवणेऽवि ॥ ११५ ॥ इय भणिऊण पयंपइ, धणंजओ मित्त ! चलसु मह गेहे । तो सुरदत्तो पत्ता, सयणस्स व तस्स आवासे ॥११६।। अह नियबुद्धिबलेणं, सुरदत्तो भणइ भाय ! नियगेहे | खित्ते इव खडिऊणं, ववेइ एरंडबीयाइं ॥११७॥ तो ताइँ तुमं सिंचमु, सलिलेणं जलहरुव्व निच्चपि । जेण तुह जणयनिहिणो, ठाणं देसेमि अचिरेण ॥ ११८ ।। अह तस्स तमाएसं, गुरुणो इव सो तहत्ति आयरई । तत्थेरंडारामं, मालाकारु व्व कुव्बइ य ॥ ११९ ॥ अह तं मज्झे एगो, एरंडो मुयइ वड इव परोहे । तो सुरदत्तो पभणइ, भाय ! तुमं मुणसु इह दविणं ॥ १२० ॥ कयउवयारंपि तओ, उक्खणइ धणंजओ तमेरडं । जं वाहीइ गयाए, विज्जो वयरि व्व पडिहाइ ॥ १२१ ॥ तो तत्थ निसाइ भुवं, सो सुरदत्तेण संजुओ खणई । कइ य कणयकोडी-तियगं नियकरनिहितं व ॥ १२२ ॥ तो जायंमि पभाए, तं कणयं विभाजिऊण ते दोवि । गिण्हति भायराविव, अद्धो अद्वेण काऊण ॥१२३॥ तत्तो कयाणगाई, गिण्हइ कणरण तेण सुरदत्तो । तह चेव सत्यवाहो, हवइ य काऊण सामगि ॥१२४॥ घोसाविऊण नयरे, तहेव आवासिओ बहिपएसे । सुमुहुत्तं मिय तत्तो, चलिओ चंपाइ नयरीए ॥ १२५ ॥ दीणे समुद्भरंतो, का
रंतो जिणगिहेसु पूयमहे । वंदंतो समणगणं, कमेण सो तत्थ संपत्तो ॥ १२६ ।। सम्माणतो लोयं, सबालवुई समागयं समुहं । | महया विच्छड्डेणं, सो पविसइ निययगेहम्मि ॥१२७॥ निम्मलजसपसरणं, पूरंतो दिसिमुहाइँ सव्वत्तो । सुरदत्तसत्यवाहो, संतुट्ठो इय कुणइ धम्मं ॥ १२८ ॥ पंचपरमिहिमंतं, समुच्चरंतो स उट्ठइ निसंते । अणुदियह सुमरंतो, देवयगुरुधम्ममाहप्पं ॥ १२९ ॥ तो होऊण पवित्तो, सो पुप्फामिसथुईहि जिणपूयं । काउण गिहे सुमरइ, पच्चक्खाणं च जहसत्ति ॥ १३० ।। तो बच्चइ जिणभुवणे, विहिपुव्वं तत्थ दहतियसमेयं । बंदणयं काऊणं, उव उत्तो एइ गुरुपासे ।। १३१ । तो वंदिऊण गुरुणो, पञ्चक्खाणं पयासइ
-156569A%25A5%