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________________ 651-5-15%EOS - तत्तो इलाइ भवणे, कारइ जत्तामहूस सिट्ठी । दिवसे य दुवालसमे, देइ इलापुत्त इय नामं ॥९॥ अह सो वुड्डि गच्छइ, 12 निविग्छ पिउगिहम्मि निवसंतो। रमणीयरायचंपय-तरु व्य गिरिकहरमज्झम्मि ॥१०॥ तेण कलासस्थाई, सव्वाइ| वि अहिगयाइँ लोलाए । थोपदिणेहिवि जाओ, सयलकलापारगो तत्तो ॥१॥ अह तारुन्नं पत्तो, आणंदतो जणं स सम्वत्थ । कीलइ य जहिच्छाए, सदि दुल्ललियमित्तेहिं ॥१२॥ अन्नदिणे पुरतीरे, नच्चंतिं लंखपुत्तियं एगं । विनाणरूव| रेहं व, पिक्खए सो इलापुत्तो ।। १३ ।। तो चिंतइ सो हियए, अहो अहो रूवमसरिसमिमोए । विनाणलच्छिलोला. उक्करिसो कोऽवि हु अउब्बो ॥ १४ ॥ लावन्नरसनईए, उदग्गसोहग्गधणनिहाणाए । निम्मावणे इमीए, नणं अवरो विही कोऽवि ॥ १५॥ एवं सो शायंतो, मंतरहस्सं व तं नहिं हियए । तग्गुणगणेहि बध्धु ब्व, चलइ ठाणाउ नो कहषि ॥ १६ ॥ अह तं निरिक्खिऊणं, चित्तालिहिय व निश्चल मित्ता । जपंति धरिय बाहुंमि, किं सहे ! शायसि मण. म्मि ? ॥१७॥ सो पुण तम्मणियाई, वयणाई मुणइ नेव बहिरु ब्व । मृउ ब न वा किंचिवि, तेसिं पच्चुत्तरं देइ ॥१८॥ लज्ज कुलमज्जायं, अवकित्तिभयं च लंघिउं अह सो। तीइ नडोए लीणो, करेइ एवं मणो सहसा ॥ १९ ॥ एवं चिय पउमच्छि, नडीमहं कहवि परिणइस्सामि । नो वा पविसिय जलणंमि, जीवियं परिचइस्सामि ॥ २०॥ मिचेहि आउ| लेहि, अह कहमवि सो गिहम्मि आणीओ । तत्यवि तहेव चिटइ, चिंतासंतत्तसव्वंगो ॥२१॥ तत्तो तप्पियरेहि, विसं-12 | ठुलं तं तहा निरिक्खेउं । पुट्ठा तस्स वयस्सा, संभमओ भो किमयंति ॥ २२ ॥ मिनेहि वि सो पुट्ठो, निबंधाओ म. 18 जोगयं आह । तं आयनिय जणओ, संजाओ बज्जपहउ व्व ॥२३॥ अह आगंतूण सयं, सभणइ किरे विचितियं तुमर। %A059095
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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